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________________ मक्खी उड़ा दी है। फिर रुक गए। मक्खी तो उड़ गई है, फिर रुक गए हैं। फिर दुबारा हाथ ले गए वहां जहां मक्खी थी, अब वह वहां नहीं है। साथी मित्र ने पूछा, आप क्या कर रहे हैं ? बुद्ध ने कहा कि मैं तुमसे बातचीत करने में लीन था और मैंने मक्खी को बिलकुल मूर्च्छित भाव से उड़ा दिया जैसे कोई बेहोश उड़ाता हो । अब मैं होशपूर्वक उड़ा रहा हूं जैसा कि मुझे उड़ाना चाहिए था। तो मैंने अपने मित्र को कहा कि जीवन की क्रियाओं में होशपूर्वक जीने का प्रयोग करो। छह महीने बाद वह मेरे पास आए और मुझे कहा कि आपने मुझे धोखा दिया है। शराब पीनी मुश्किल होती चली जाती है, क्योंकि दो बातें एक साथ चलनी असंभव हैं। अगर मुझे होशपूर्वक जीना है तो मैं शराब नहीं पी सकता हूं। और अगर होशपूर्वक नहीं जीना है तो मैं शराब पी सकता हूं। लेकिन अब होशपूर्वक जीने में जो आनंद की अनुभूति शुरू हुई है वह शराब पीने से कभी नहीं मिली। एक और बात उन्होंने मुझे कही कि एक अदभुत अनुभव मुझे हुआ है कि जब मैं दुखी था तो शराब दुख को भुला देती थी। इधर अभी महीनों निरंतर जागने की कोशिश से सुख की एक धार भीतर बहनी शुरू हुई है, एक झरना भीतर फूटना शुरू हुआ है। शराब पीता हूं तो मैं भूल जाता हूं। शराब सिर्फ भुलाती है । सुखी आदमी को सुख भुला देती है, दुखी आदमी को दुख भुला देती है। और दुखी आदमी शराब खोजे, समझ में आता है। सुखी आदमी शराब कैसे खोज सकता है? तो उन्होंने कहा कि मुश्किल हो गया। मैंने कहा, मुश्किल हो जाए बात अलग, लेकिन मुझसे उसकी बात मत करना। आप जागने का ध्यान का प्रयोग जारी रखें। मेरी दृष्टि में महावीर ने अहिंसा का उपदेश ही नहीं दिया । महावीर ने तो ध्यान का एक उपदेश दिया। उस ध्यान से जो भी गुजरा, वह अहिंसक हो गया । उस ध्यान से गुजरने वाले को अहिंसक हो जाना पड़ा। उस ध्यान से जो गुजरेगा वह अहिंसक हो ही जाएगा । अहिंसा की अलग से शिक्षा देने की कोई जरूरत नहीं है । लेकिन अब महावीर के पीछे चलने वाले लोग हैं। वे 'अहिंसा परमो धर्मः' की तख्तियां लगाए हुए बैठे हैं। वे बैठे रहेंगे तख्तियां लगाए हुए और हिंसा चलती रहेगी। और वे अपने बच्चों को अहिंसा का उपदेश दे रहे हैं । वे सारी दुनिया में शोरगुल मचा रहे हैं कि अहिंसक हो जाना चाहिए सबको। और उन्हें शायद मूल सूत्र का पता ही नहीं है कि अहिंसक कोई होगा कैसे? भीतर चित्त जागे तो जागे चित्त से हिंसा विसर्जित होती है । जागे हुए चित्त में हिंसा नहीं रह जाती। जागा हुआ चित्त हिंसा से मुक्त हो जाता है, हिंसा से मुक्त होना नहीं पड़ता। और तब जो शेष रह जाता है, वह अहिंसा है। अहिंसा शब्द नकारात्मक है। हिंसा चली जाती है तो जो शेष रह जाती है वह अहिंसा है। ब्रह्मचर्य, सत्य विधायक शब्द हैं। अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य नकारात्मक शब्द हैं। यह सोचने जैसा है। असल में परिग्रह की वृत्ति विदा हो जाती है तो जो शेष रह जाता है वह अपरिग्रह है। अपरिग्रह को सीधा नहीं साधा जा सकता है । और कोई अगर अपरिग्रह को सीधा साधेगा तो वह परिग्रही हो जाएगा, अपरिग्रही नहीं। अगर कोई धन छोड़ेगा तो जितनी पकड़ उसकी धन के साथ थी, उतनी अब धन छोड़ा इस बात के साथ शुरू हो जाएगी। 181
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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