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________________ अज्ञान घना होता है, तो आचरण से दुराचरण का अंधकार फैलता रहता है। हिंसा है, और असत्य है, और काम है, और क्रोध है, वे उसकी खिड़कियों से जीवन के बाहर फैलते रहते हैं। और जब उसके भीतर ज्ञान का दीया जलता है और उसे ज्ञात होता है कि मैं कौन हूं और क्या हूं, तो उसके सारे भवन के द्वार, खिड़कियां आलोक को बाहर फेंकने लगते हैं। वही आलोक अहिंसा है, वही आलोक अपरिग्रह है, वही आलोक ब्रह्मचर्य है, वही आलोक सत्य है, फिर वह अनेक-अनेक किरणों में सारे जगत में व्याप्त होने लगता है। महावीर ने तथ्यों को जाना, तथ्यों को पहचाना, वे सुख के भ्रम से मुक्त हुए, तथ्यों की व्याख्या छोड़ दी। व्याख्या छोड़ते ही वह दिखाई पड़ना शुरू हुआ जो कि ज्ञाता है, जो कि साक्षी है, जो कि विटनेस है। उसको जानने से उन्होंने स्वयं को पहचाना और जाना और जीवन में उस क्रांति को अनुभव किया जो सारे जीवन को प्रेम और प्रकाश से भर देती है। ऐसा जीवन अपने भीतर जाकर उन्होंने उपलब्ध किया। और जो व्यक्ति भी कभी ऐसे जीवन को पाना चाहे वह अपने भीतर जाकर उपलब्ध कर सकता है। महावीर होने की क्षमता हर एक के भीतर मौजूद है। लेकिन हम हैं पागल, हम उस क्षमता को तो न खोजेंगे, महावीर की एक मूर्ति बनाएंगे और उनके चरण पकड़ेंगे। हम उस मंदिर को तो न खोजेंगे जो भीतर है, हम एक दीवाल बनाएंगे, एक मकान बनाएंगे और कहेंगे यह मंदिर है। हम उस महावीर की तलाश में तो न जाएंगे जो कि सबकी निहित ऊर्जा है, सबकी निहित शक्ति है, हम उस महावीर की खोज करेंगे जो पच्चीस सौ साल पहले किसी मां-बाप से पैदा हुआ, जन्मा चला और मरा। हमारी पकड़ उस आंतरिक तत्व पर अगर हो तो हम निश्चित ही महावीर को उपलब्ध हो सकते हैं। सवाल उनकी पूजा करने का नहीं, सवाल उन्हें मानने का नहीं, सवाल उस परे अंतस्तल को जानने का है जहां कि वह क्रांति पैदा होती है और व्यक्ति सामान्य से उठ कर असामान्य जीवन में प्रविष्ट हो जाता है। जहां वह असत्य से उसके सत्य के संसार से संबंधित हो जाता है। जहां वह चलायमान जो है उससे हट कर वह जो अचल है उस पर खड़ा हो जाता है। जहां वह अंधकार से हटता है और प्रकाश के बिंदु को उपलब्ध कर लेता है। यह प्रत्येक मनुष्य की निजी क्षमता है। और महावीर का संदेश दुनिया को यही है कि कोई मनुष्य किसी दूसरे की तरफ आंखें न उठाए, मुखापेक्षी न हो। किसी दूसरे से आप आशा न करें, किसी दूसरे से मांगें नहीं, किसी दूसरे से भिक्षा का खयाल न करें। जो भी किया जा सकता है वह प्रत्येक व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से, अपने श्रम से, अपनी क्षमता से, अपने साहस से कर सकता है। ___ व्यक्ति की गरिमा को जैसी प्रतिष्ठा महावीर ने दी संभवतः संसार में किसी दूसरे व्यक्ति ने नहीं दी। और सारी पूजा और सारी शरण जाने की भावना छीन ली। और कहा अपनी शरण पर, अपने पैरों पर खड़े हो जाओ। अपनी हिम्मत और साहस का प्रयोग करो। जागो, निरीक्षण करो, और अपने भीतर प्रवेश पाओ, तो कोई भी वजह नहीं है कि जो कभी किसी को उपलब्ध हुआ हो वह हमें उपलब्ध क्यों न हो सके। यह उपलब्ध हो सकता है। और इसके लिए जरूरत नहीं कि कोई जंगल में भाग कर जाए, कोई पहाड़ पर जाए, कोई कपड़े बदले, कोई लंगोटी लगाए या नंगा हो जाए, या कोई भूखा मरे, या कोई उलटा सिर करके खड़ा हो जाए। इस सब की कोई भी जरूरत नहीं है। कोई उपद्रव, किसी तरह के उलटे-सीधे काम, किसी तरह का कोई 169
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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