SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उन्हें मैं वैसी अवस्था में आंख बंद किए हुए छोड़ कर चला आया । पीछे तीन महीने बाद दुबारा गया। पहली बार गया था तब भी वे गले मिले थे और उनकी आंखों में आंसू थे। इस बार भी वे गले मिले, इस बार भी उनकी आंखों में आंसू थे। लेकिन दोनों आंसुओं में जमीन और आसमान का भेद था। वे दुख के थे और अब ये बड़े गहरे सुख के थे। वे कहने लगे, यह तो अदभुत हो गया। जैसे-जैसे मैं देखने लगा, पड़ा रहा और देखता रहा और देखता रहा और मैंने जाना कि मैं अलग हूं और पीड़ा के केंद्र अलग हैं। जहां दर्द हो रहा है, वे अलग हैं; और मैं जो देख रहा हूं, वह पृथक है। जैसे-जैसे मुझे पृथकता दिखाई पड़ने लगी मैंने पाया कि यह तो मामला ही गया । मैं तो कुछ और ही था, जिसे न कभी कोई सुख हुआ है, न कभी कोई दुख हुआ है। मैं तो सदा ही देखने वाला था । मैं तो सदा ही साक्षी था। जैसे-जैसे व्यक्ति सम्यक दर्शन की अनुभूति से गुजरेगा उसे सम्यक ज्ञान होगा। चुपचाप तथ्यों को देखने से, जीवन के तथ्यों को देखने से, निरीक्षण करने से, उस तत्व का बोध होना शुरू होता है जो हमारे भीतर है। तथ्य बाहर रह जाते हैं और कुछ हमारे भीतर एक नई शक्ति खड़ी हो जाती है जिसका हमें अनुभव होने लगता है। उस शक्ति को चाहे कोई आत्मा कहे, चाहे कोई कोई और नाम दे दे, इससे कोई प्रयोजन नहीं। लेकिन जीवन की सारी घटनाओं के बीच में, घटनाएं बदलती रहती हैं, बीच में कोई तत्व खड़ा है अपरिवर्तनीय । जैसे गाड़ी का चाक चलता है और कील खड़ी हुई है। और चाक घूमता रहता है और कील खड़ी रहती है। और कैसा आश्चर्य है कि जो चाक चलता है वह इस कील के बल पर चलता है जो कि बिलकुल नहीं चलती और खड़ी रहती है। वैसे ही जीवन की सारी दौड़ और सारा चलना और सारे तथ्यों का समूह उस केंद्र पर घूमता है, जो कि अचल है, जो कि सदा खड़ा है। जब आप बच्चे थे तब भी था, जब आप जवान थे तब भी था, जब आप बूढ़े हुए तब भी वह है । बचपन आया और गया, लेकिन वह केंद्र अचल खड़ा हुआ है। जवानी आई और गई, और वह केंद्र अचल खड़ा हुआ है। बुढ़ापा आएगा और जाएगा, और वह केंद्र अचल खड़ा हुआ है। चेतना का एक बिंदु है जो जीवन के सारे प्रवाह में अचल है । उसी बिंदु को पा लेना आत्मा को पा लेना है। तथ्यों को और चल - जगत को, वह परिवर्तनशील जगत को, वह जो चेंजिंग सारी दुनिया है, उसके प्रति जो जागता है वह क्रमशः उसे अनुभव करने लगता है जो कि अचल है, जो कि केंद्र है, जो कि बिंदु है, जो कि हम हैं, जो कि हमारी सत्ता है, जो कि हमारी ऑथेंटिक, हमारी प्रामाणिक आत्मा है। उस बिंदु को जानना सम्यक ज्ञान है । सम्यक दर्शन है विधि, सम्यक ज्ञान है उसकी उपलब्धि। ये दो बातें बड़ी अर्थपूर्ण हैं । और दूसरे बिंदु को जो उपलब्ध हो जाता है उसका सारा आचरण बदल जाता है । उसे महावीर ने कहा, उसका आचरण सम्यक आचरण हो जाता है। दर्शन है विधि, ज्ञान है उपलब्धि, आचरण है उसका प्रकाश । जब भीतर शांत और आनंदित, अचल और अमृत आत्मा का बोध होता है, तो सारा आचरण कुछ और हो जाता है। जैसे किसी घर के दीए बुझे हों, तो उसकी खिड़कियों से अंधकार दिखाई पड़ता है। और जैसे किसी घर के भीतर दीया जल जाए, तो उसकी खिड़कियों से रोशनी बाहर फिंकने लगती है। ऐसे ही जब किसी व्यक्ति के भीतर ज्ञान बुझा होता है और 168
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy