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________________ सकती। अंगारे का उपयोग किया जा सकता है। अंगारे के हम मालिक नहीं हो सकते। राख के हम मालिक हो सकते हैं। राख को हम पजेस कर सकते हैं। अंगारा जिंदा चीज है। जिंदा महापुरुष अंगारा होता है। हम जिनकी पूजा करते हैं वे राख हो जाते हैं। और हजारों वर्षों में प्रतिध्वनियां होती रहती हैं, व्याख्याएं होती रहती हैं, और सब परिवर्तित हो जाता है। ___ एक गांव में दो पैरेलल, समानांतर रास्ते थे। दोनों रास्तों पर पूरी बस्ती आबाद थी। और जैसा अक्सर होता है, दो पड़ोसियों में कोई मेल नहीं होता, दो मोहल्लों में कोई मेल नहीं होता, दो गांवों में कोई मेल नहीं होता, दो मुल्कों में कोई मेल नहीं होता, जहां दो है वहां झगड़ा एकदम शुरू हो जाता है। पति-पत्नी में कोई मेल नहीं होता। वहां दो आए कि झगड़ा शुरू हुआ। उन दोनों समानांतर रेखाओं पर बसे हुए मोहल्लों में भी कोई मेल नहीं था। उनके धर्म अलग थे, उनकी राजनीति अलग थी, उनकी श्रद्धा अलग थी, उनके सिद्धांत अलग थे, शास्त्र अलग थे, पैगंबर अलग थे, तीर्थंकर अलग थे। लेकिन एक-दूसरे को देखते रहते थे। एक-दूसरे के आस-पास गुजरते भी थे। मिलते तो कभी नहीं थे, पास से गुजर जाते थे। जैसे हिंदू-मुसलमान गुजर जाते हैं। जैसे ईसाई-जैन गुजर जाते हैं। जैसे श्वेतांबर-दिगंबर गजर जाते हैं। एक से एक पागलपन हैं। दो आदमी एक-दूसरे के पास से गुजर जाते हैं, बीच में एक अनदिखी दीवाल खड़ी रहती है और मिलने नहीं देती। वैसा उन दोनों के बीच था। लेकिन एक दिन एक फकीर आ गया। और फकीरों को कोई वास्ता नहीं होता कि तुम किस बस्ती के रहने वाले हो, किस मंदिर के पूजने वाले हो। वह दोनों में आता-जाता था। एक दोपहर वह एक बस्ती से दूसरी बस्ती में निकल रहा था। उसकी आंखों से आंसू झर-झर टपक रहे थे। उस दूसरी बस्ती के लोगों ने समझा कि पहली बस्ती में कोई मर गया। उससे पूछा भी नहीं किसी ने कि क्या हुआ। लोग इतने समझदार हैं कि बिना पूछे भी समझ लेते हैं। कृष्ण से कोई नहीं पूछता कि तुम्हारा मतलब क्या है। लोग इतने समझदार हैं कि अपने घर में गीता रख कर अर्थ निकाल लेते हैं, व्याख्या छपा देते हैं विचारक, खर्च करके बंटवा भी देते हैं लोगों में। कृष्ण से कोई नहीं पूछता, हम अपना अर्थ निकाल लेते हैं। फकीर को देखा कि उसकी आंख से आंसू टपकते हैं, दूसरी गली से आता है, मोहल्ले के लोगों ने समझा कि वहां कोई खतरा हो गया, कोई मर गया। यह तो पहली घटना थी समझ की। अब समझ की प्रतिध्वनियां होनी शुरू हुईं। सांझ होते-होते उस बस्ती में खबर फैल गई कि दूसरे मोहल्ले में महामारी फैली हुई है। न मालूम कितने लोग मर चुके हैं। स्वभावतः, सांझ होते-होते पच्चीस कदम आगे बढ़ गई थी बात, पच्चीस मुंह तक पहुंच गई थी। और वह आदमी ही क्या जो एक खबर को सुने और कुछ उसमें जोड़ न दे। नहीं तो दुनिया में न्यूज पैदा होने बंद हो जाएं, न्यूजपेपर बंद हो जाएं। आदमी बड़ा क्रिएटिव है, बड़ा सृजनात्मक है, बड़ा कंसट्रक्टिव, बड़ा रचनात्मक। जरा सी चीज मिलती है, कंसट्रक्ट करता है उसको, बनाता है, ट्रेस करता है। फिर दूसरा आदमी कुछ और कंसट्रक्ट करता है। फिर आगे बढ़ती चली जाती है। 138
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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