SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उनके बाबत क्या सोचता है और क्या कहता है, और न इसका वे कोई मूल्य मानते हैं। लेकिन महावीर के पीछे चलने वाले के मन को क्यों गुदगुदी छूटती है? क्यों ऐसा अच्छा लगता है कि कोई महावीर की प्रशंसा करे? बात क्या है ? ____ बीमारी अनुयायी के भीतर होगी, महावीर में तो बीमारी का कोई पता नहीं चलता। बीमारी यह है कि जब जोर से अनुयायी चिल्लाता है, बोल महावीर स्वामी की जय, तो वह रहा है, वह अपनी जय बोल रहा है। मेरे भगवान जो हैं. वे बहुत बड़े भगवान हैं! उनकी आड़ में मैं भी बड़ा हो जाता हूं। अन्यथा मुझे उनसे क्या लेनादेना? भगवान से मुझे क्या प्रयोजन? उनकी जय से मुझे क्या प्रयोजन? और जय बोलने से किसी की जय सिद्ध होती है? मेरे जीवन से जय बोली जानी चाहिए कि मेरा जीवन प्रकट बने; मेरे भीतर वह प्रकट हो, जिसको मैं आदर दे रहा हूं, जो उसके भीतर प्रकट हुआ है। जिस फूल की सुगंध की मैं बातें कर रहा हूं, मेरी जिंदगी में भी वह सुगंध हो, तो जय निकलती है। और नहीं तो थोथे जय-जयकार से पृथ्वी में बहुत शोरगुल मच चुका, उससे कोई परिणाम नहीं होता। ____ जीसस क्राइस्ट के मानने वाले चिल्लाते रहते हैं, जय हो जीसस क्राइस्ट की। राम के मानने वाले राम का जय-जयकार करते हैं, महावीर के मानने वाले महावीर का जय-जयकार करते हैं। और जय-जयकार में एक-दूसरे को हरा दें इसकी कोशिश करते हैं, कि हमारा जयजयकार दूसरे के शोरगुल से बड़ा हो जाए। इससे अगर महावीर और कृष्ण और क्राइस्ट अगर कहीं भी होंगे, तो कान पर हाथ रख लेते होंगे कि ये पागल बड़ा शोरगुल मचाते हैं, शांति से बैठने नहीं देते। काहे के लिए चिल्ला रहे हैं? किसके लिए चिल्ला रहे हैं? यह क्यों इतनी उत्सुकता और आतुरता क्यों है कि कोई प्रशंसा करे? क्यों यह प्रशंसा में हम अपना रस, अपने अहंकार की तृप्ति देखना चाहते हैं? जब कोई कहता है, राम बहुत बड़े हैं, तो राम का मानने वाला भी बड़ा हो जाता है आड़ में, ओट में कि मैं कोई छोटे का मानने वाला नहीं हूं, बहुत बड़े का मानने वाला हूं। जब कोई कहता है, जीसस क्राइस्ट ईश्वर के पुत्र हैं, तो जीसस क्राइस्ट का मानने वाला बड़ा हो जाता है, कि हो गए फीके राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, सब। जीसस क्राइस्ट ईश्वर के पुत्र हैं और मैं उनका मानने वाला हूं। जब महावीर की प्रशंसा होती है तो महावीर का मानने वाला सिर हिलाने लगता है कि बड़ी अच्छी बातें कही जा रही हैं! ___ कुछ अच्छी बातें नहीं कही जा रही हैं, आपके अहंकार को गुदगुदाया जा रहा है, आपको मजा आ रहा है, आप बड़े होते मालूम हो रहे हैं। लेकिन ध्यान रहे, धर्म अहंकार का शत्रु है। और महावीर की तो सारी की सारी साधना अहंकार को मिटा देने की साधना है। तो ये कुछ महावीर की जयंती पर करने वाली बातें नहीं हैं। इसको सोचना जरूरी है, विचारना जरूरी है। हमारे मोटिव्स क्या हैं? हमारी अंतस-इच्छा क्या है जो हम जय-जयकार बोलते हैं, या प्रशंसा के लिए आतुर हो उठते हैं कि कोई प्रशंसा करे? क्यों? लेकिन इन्हीं गलत हमारी इच्छाओं ने हमारे सारे महापुरुषों के अदभुत जीवन को एकदम विकृत कर दिया। हमारे देखने के ढंग, हमारे सोचने के ढंग हम जैसे बंद हैं, हमारे जैसे संकीर्ण 113
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy