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________________ उस अपमान का मैं स्मरण दिलाना चाहता हूं। और हमारे भीतर कोई प्यास सरक जा और अपमान पकड़ ले, और कोई पुरुषार्थ, कोई संकल्प पैदा हो जाए- कि जो किन्हीं लोगों ने कभी उपलब्ध किया है, उसे हम भी, मैं भी उपलब्ध करूंगा, मुझे भी उपलब्ध करना है, मैं भी बिना उपलब्ध किए अपने इस जीवन को व्यर्थ खोने को नहीं हूं। अगर यह संकल्प पकड़ जाए तो जीवन में अदभुत - निश्चित ही अदभुत क्रांति घटित हो सकती है। प्रभु करे, वह क्रांति प्रत्येक के जीवन में घटित हो जाए, यही मेरी कामना है। और अंत में सबके भीतर बैठे हुए परम प्रकाशमान प्रभु को मैं प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें। 105
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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