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________________ ८९ महावीर परिचय और वाणी लेना पड़ता है। निश्चित ही व्रत धमन लायगा । प्रती तो नि शल्य हो ही नहीं सरता। उसका व्रत ही एक शल्य है। अव्रती नि शल्य हो सकता है। लेकिन में यह नहीं कहता कि अमती होने से ही कोई नि शत्य हो जायगा । अवती होना हमारे जीवन की स्थिति है। अव्रती दशा म जागना हमारी साधना है। उदाहरण के लिए कुदहुद को ही लें। वह वसा ही व्यक्ति है जसा महावीर । वह कोई व्रत नहीं पारना, केवल समझ को जगाता है। जो समझता है वह छूटता चला जाता है और जो व्यथ है आप ही विदा हो जाता है। लेकिन है वह अव्रता व्यक्ति । वह जो प्रता व्यक्ति है, वह सदा झूठ है निपट पावडी है। व्रत पारन से कोई भी कहा नहा पहुचा। महावीर को मी मैं अनमी कहता हूँ। कुदकुद भी अव्रती है ऐसा ही है उमास्वाति । ऐम ही है कुछ और लोग भी। लेकिन जब तुम कहते हो 'जैन श्राव', 'जन साधु' ता न तो कुदकुद जन है, न उमास्वाति । जिन होने का पागलपन है, वे कभी नहीं पहुंचते क्यापि जन होने का मम व्रत आदि से होता है। यत की व्यथता का अनुभव अत पारने स ही होता है। अगर हम जाग जायें ता पता लग कि हमारे सारे व्रत व्यथ थे । चित्त वैसा ही रह गया है जसा था । पत्तय को भी मैं रत की मापा मानता हूँ। यह भी व्रत की बात है। प्रेम अव्रत की भाषा है अव्रत की बात है। लेकिन अन्वत अकेला कापी नहीं है। अव्रत के साथ जागरण हा। जागरण चाहे अव्रती का हो या व्रती का, फलीभूत होता ही है। आप जिस स्थिति म हा उसी म जाग जाये । हम जो मी कर रहे हैं उसके प्रति जाग जायें। करने के प्रति जागने से फल आना शुरू हो जाता है। चारी करनेवाला चारी के प्रति जाग जाय तो उसका भी जागरण सफल होगा। जागरण के पीछे वर हागा अवश्य । हम मदिर जा रहे हा तो भी जागना है वेश्याव्य जा रहे हा तो भी जागना है। हम जा भो करें उमे होशपूर्वक करें। होपूर्वक करने स जो गप रह जाता है वह धम है और जो मिट जाता है वह अधम । नीद तोडन स वडा और कोई, पौरुप नहीं है। हमारा कोइ आतरिक गनु नही है सिवा निद्राव, मच्छा और प्रमान के । इसलिए महावीर रा कोई पूछे वि घम क्या है तो वे कहेंग अप्रमाद।और अवम क्या है ? व कहगे प्रमाद । योई पूछे कि साधुता क्या है ? ये जवाय १ गास्त्र कहते हघि प्रती को निशल्य होता है। उदाहरण के लिए निम्नलिसित सूत्र ध्यातव्य है पुपिवारा दुम्सेना, सोउण्ह अरइ मय । अहियासे अध्याहिमो, देहटुक्त महापल ॥ (ना० अ०८, गा०२७) अर्यात-भधा, तपा दुगप्या, सरदी, गरमी, मरति (राग का अभाव), भय आदि सभी काटा को साधर अदीन भाव मे सहा करे। (समभाय से राहन रिए गए) दहिर पष्ट महाफलदायीहोतेह । । - -
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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