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________________ महावीर परिचय और वाणी ८३ हता हूँ कि महावीर को भी धारणा वसी न थी । वस्तुत असली चीज है अविवेक । जिसके पास तक नही है, वह वाह्य आचरण को व्यवस्थित नही कर सकता । विवेक हो तो बाह्य आचरण स्वयं यवस्थित हो जाता है उसे व्यवस्थित करना नही पडता । जिसे करना पडता है, वह इस बात की सवर देता है कि उसके पास तनहा है । अतविवेक की अनुपस्थिति में बाह्य आचरण अधा है - चाहे हम उसे अच्छा कहें या बुरा, नतिक कहें या अनतिक | हमारा समाज अच्छा आचरण उसे कहता है जिससे उसके जीवन में सुविधा बनती है बुरा आचरण उसे कहता है जिससे असुविधा होती है। समाज को व्यक्ति की आत्मा से कोई मतलब नही है.... सिफ व्यक्ति के व्यवहार से मतलब है, क्याकि समाज व्यवहार से बनता है, आत्माआ से नही बनता । समाज को चिता यह है कि आप सच बोलें, यह चिंता नही है कि आप सत्य हो । आप झूठ हा तो काई चिता नहीं, पर वोलें सच । समाज की चिता आपके आचरण से है, घम की चिता आपकी आत्मा से है। समाज के द्वारा आचरण की जो व्यवस्था है वह मय पर आधारित है। पुलिस है, अदालत है वानून है या पाप पुण्य का डर है स्वग है नरक है । परिणामस्वरूप समाज यक्ति का नेवल पापडी बना पाता है या अनतिवनति कभी नही । और जो व्यक्ति पाखडी हो गया उसके धार्मिक होने की सम्भावना अनतिक व्यक्ति से भी कम हो जाती है । परम पानी जसा भीतर होता है बसा ही बाहर भी । अनानी का भी बाहूयाम्यतर एक-सा होता है । बीच में पासडी होता है जिसका बाहर पानी जसा किन्तु भीतर अनानी -जसा होता है । उसके भीतर गाली उठती है हिंसा उठती है मगर वह 'अहिंसा परमोधम' की तम्नी लगाकर बढ़ता है चरित्रवान दिखाई पड़ता है, अनुशासनबद्ध होता है। बाहर का व्यक्तित्व वह पानी से उधार लेता और भीतर वा यक्तित्व अज्ञानी से वह पाखडी व्यक्ति, जिसे समाज नतिक कहता है, कभी भी घम को उपलब्ध नही होता । अनतिक व्यक्ति उपलध हो भी सकता है । अक्सर पापी पहुँच जाते हैं पुण्यात्माएँ मट जाती हैं। इसके दोहरे कारण हैं । एक तो पाप दुखदायी है। उसकी पीडा है जो रूपान्तरण राती है। दूसरी बात यह है कि पाप करने के लिए समाज के विपरीत जाने के लिए भी साहस चाहिए। पापडी लोग अतिसामान्य -- मीडियोकरहोते हैं | उनम साहस नहीं होता। साहस के अभाव मे वे चेहरा वसा बना लेते हैं जैसा समाज चाहता है, समाज के डर के कारण । अनैतिक व्यक्ति के पास एक साहस होता है जो कि आध्यात्मिक गुण है और उसके पास पाप वो पीडा होती है। पाखडिया की नैतिकता साहस की कमी के कारण होती है, साहस के कारण नहीं | एक आदमी चोरी नही करता। आम तौर से हम उसकी प्रसा करते हैं । मगर चारी न करना ही बचार हान का लक्षण नहा है । चारी न करन वा कुल 1
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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