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________________ महावीर परिचय और वाणी ६७ उस सयासी का चित्त अपरिग्रही था । वह सम्राट के महल मे था, लेकिन महल उसमे न था, इसलिए वह उसे छोडकर कहा भी जा सकता था। तो मेरा खयाल है कि महाव्रत से अणयत फलित हो सस्ते हैं लेकिन अणुवता के जोर से कभी महानत नही निकलता, क्यापि अणदत की कोगिश मच्छित चित्त को कोशिश हैं। जोर, कोई महाव्रत की कोशिश नहीं कर सकता। वह तो अमूछा बात ही उपलब्ध हो जाता है। महायत अभ्यास से नहीं आ सकता। तुम्हारी मूली दृट जाय तो वह फलित हो जाता है तुम्हारा चित्त महानती हो जाता है। आम तौर पर माधक की कोगिश यही रहती है कि वह अणुव्रत से चले और महावत पर पहुँच जाय । मगर वह कमी नहीं पहुंच पाता । महाव्रत विस्फोट है। महावीर महारती थे। उनकी तीन देगनाएँ थी सम्यक दशन सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र । लेकिन उनके अनुयायी इसे उल्ट देते हैं और कहते हैं कि पहल चारित्र साघो। फिर नान स्थिर होगा, जब नान स्थिर होगा तब दशन की क्षमता उपल ध होगी। नही, सम्यक दशन पहले हो। दशन से मान फरित होता है और जब ज्ञान प्रकट होता है तव चारित्र भाता है। चारित्र अतिम है, प्रथम नहीं। साधना ध्यान और समाधि की है। दरान उसका फल है। दशन से पान निमित्त हागा यौर मान स सम्यक आचरण। वह आचरण किस रूप म प्रस्ट होगा? चूकि आचरण बहुत-सी चीजा पर निभर है, इसलिए वह कई रूपा में हो सकता है। प्राइस्ट म एक तरह का हागा, कृष्ण म दूसरी तरह का योर महावीर म तासरी तरह का । दान विल्कुर एक होगा, पर पान म भेद पड जायगा ययापि उस दशन को मान बनानेवाला प्रत्येक व्यक्ति अलग अरग है। मान आचरण बनेगा और यह मिन मि न अनुभूति-उपर घ व्यक्तिया म अरग-अलग होगा । जैस~मार माज महावीर यूयाक में पैदा हा तो वहां व नगे न होग। जिस स्थिति म उनका जन्म हुआ था, उसम नग्नता पागलपन का पर्याय नहीं पी, स यास वा पर्याय पो। प्रश्न है कि अगर ऐसी बात है वो क्या महावीर उत्तरी ध्रुव म मास मी या सवन थे? सम्भव है । लेकिन, घूमि उह मूग जगत से सम्बय स्थापित करना पा लिए वे ऐसा न मरत । मास खाने से माया कोई पिराध नहीं है, लग्नि मगर दे मास खाते तो केवल माप्या सही सम्बय स्थापित कर सकत थे और वह सम्बर भी यहुत शुद्ध सम्बप नही होता---उसमें भी योडी वापाएं होती । पूर्ण शुद्ध सम्वय पे लिए पूण अवर सापना अनियाय होता है। इसलिए मैं महिंसा को मात्र प्राप्ति या अनियाय तत्व नहीं मानता। अहिंसा अनिवाय तत्त्व है मनुष्य नीचे पी यानिवा से सम्बघ स्थापित करने वा। में महता बिपरित ता समाज, और व्यवहार, स्थिति युग नीनि-व्यवस्था राज्म-इन मय पर निमर होता है। यह आता है सम्पर दान से, किन प्रपट
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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