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________________ महावीर : परिचय और वाणी रही है,-नए लोग नही आ सके। मगर जन्म से धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं है, इसलिए 'जन' जैसी कोई चीज नहीं है दुनिया मे। वह महावीर के साथ ही खत्म हो गई। जन्म से वने जैन लोगो के दावे सुनकर महावीर भी हंगते। ये तथाकथित जैन कहते है कि महावीर तीर्थ कर है। खुद महावीर कहते----'स्यात् हो भी सकता है, स्यात् नही भी हो सकता।' जन्म ने जैन होना विलकुल अनम्भव है। जिस प्रकार जन्म से कोई फो नही हो नकता, उसी प्रकार जिन बनने पर कोई जैन वन नकता है। जन्म से कोई मुसलमान हो सकता है, पर सूफी नहीं। महावीर के तर्क के विपरीत अरस्तू का तर्क चीजो को तोडकर अलग-अलग कर देता है । अरस्तू का तर्क कुछ इन प्रकार है-'अ' 'अ' है मीर 'अ' कभी '' नहीं हो सकता। 'ब' 'व' है, कभी 'अ' नहीं हो सकता । पुरुप पुरुप है, स्त्री स्त्री है । पुत्प स्त्री नहीं हो सकता, स्त्री पुरुष नही हो सकती। काला काला है, सफेद सफेद हे, सफेद काला नही और काला सफेद नही । महावीर कहते कि 'अ' 'अ' भी हो सकता है, 'अ' 'व' भी हो सकता है। यह भी हो सकता है कि 'अ' भी न हो, 'व' भी न हो। और 'अ' अनिर्वचनीय है। स्त्री स्त्री भी है, पुरुप नी है। पुरुप पुरुष भी है, स्त्री भी है, पुरुष स्त्री भी हो सकता है और स्त्री पुरुष हो सकती हे और अनिर्वचनीय भी है। ___ जिन्दगी उतनी सरल नही - जितनी अरस्तू समझता था। जिन्दगी मे न कोई चीज काली है और न सफेद । कोई स्थान ऐसा नही जहाँ केवल अंधेरा हो और कोई स्थान ऐसा नही जो बिलकुल प्रकाशित हो। गहरे प्रकाश में भी अधकार मौजूद रहता है और अबेरी से अधेरी जगह मे भी प्रकाश होता है। जिन्दगी बिलकुल घुलो-मिली है, तरल है। अरस्तू के तर्क से निकलता है गणित और महावीर के तर्क से उद्भुत होता हे रहस्य । यदि महावीर से कोई पूछता कि जिस स्याद्वाद की आपने घोषणा की, क्या वह पूर्ण सत्य है तो वे कहते-'स्यात्'। इसमे भी वे 'स्यात्' का ही उपयोग करते । वे कभी यह दावा नहीं करते कि मै तुम्हारा कल्याण कर सकूँगा। वे कहते थे कोई किसी का कल्याण नहीं कर सकता, अपना कल्याण आप ही करना होगा। जब कोई कहता है कि 'मेरी शरण मे आओ, में तुम्हे मोक्ष दिलाऊँगा' तव अनुयायी उसका अनगमन करते है। मगर महावीर कहते थे 'मेरी शरण मे मोक्ष नही मिल सकता। कोई किसी की शरण से कभी मोक्ष नही पाता।' इसलिए ऐसे व्यक्ति का अनुगमन कौन करता ? स्वयं महावीर भी किसी को गुरु वनाना या किसी का गुरु वनना नही चाहते थे । इसलिए अनुयायी होने के सारे रास्ते उन्होने तोट दिए। उनकी दृष्टि मे सहगमन हो सकता है, अनुगमन नही हो सकता। इसलिए महावीर के अनुयायी उन्हे नही समझ सकते ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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