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________________ महावीर : परिचय और वाणी है, उममे भी नत्य तक पहुँचा जा नरुता है, वहां मन्प्रदाय तो निर्मित होगा, पर माम्प्र. दायिक चित्त न होगा । महावीर का चित्त बिलकुल गर गाम्प्रदाविक था। वे कहते थे कि इस पृथ्वी पर पूर्ण जैसी कोई चीज नहीं होती। जमन्य में भी नत्य या अग होता है और सत्य में भी अगत्य का अग। अगर कोई उनसे पूछता कि ऐसा है ?' तो वे कहते, 'हाँ. हे ।' साथ ही वे यह भी कहते कि नहीं नी हो सकता है। कोई पूछता, 'ईश्वर है ?' तो महावीर कहते, होगी मयता है, नहीं भी हो सकता । मिनी अब में हो सकता है, किसी अर्थ मे नही हो सकता।' नी सापेक्षवाद के कारण उनके जनयायियो की मन्या न बढी। लोगो ने नमता-उनका दावा पनका नहीं। उन्हें महावीर की वातो मे मगय की रेखा दीख पड़ी। किन्तु, वह मनय न था, सम्भावना की ओर इगित था। महावीर सिर्फ नब नयो की सम्भावना की बात करते थे । उनका मतलब यह न था कि मुझे मनय हे खर के होने-न-होने मे। उनका मतलब था कि सम्भावना है ईश्वर के होने की भी, न होने की भी। जो आदमी जितना बुद्विमान् होता चला जाता है, उसके वक्तव्य उतना ही 'स्यात्' होते चले जाते हैं। वह कहता है, 'स्यात् ऐना हो ।' वह दावा नहीं करता कि ऐसा ही है। लेकिन उसकी बुद्धिमत्ता को समझने के लिए बुद्धिमान् ही चाहिए। जितने अधिक बुद्धिहीन दावे होगे, उतनी ही अधिक बुद्धिहीनो को सख्या होगी। महावीर सख्या इकट्ठी न कर सके। उनके लिए अनुयायियों का भी एकत्र करना मुश्किल था, एकदम असम्भव था। वे किसको और कैसे प्रभावित करते? आदमी आता है गुरु के पास कि उसे पक्का आश्वामन मिले, चिटूठी मिले कि स्वर्ग में तुम्हारी जगह निश्चित रहेगी। गुरु पक्के वादे करे कि वह अपने शिष्य को नरक जाने से पचा लेगा। लेकिन महावीर का कोई भी दावा न था। इतना गैर दावेदार आदमी जो सत्य को अनेक कोणो से देखें, जगत् मे हुआ ही नहीं। दुनिया मे तीन सम्भावनाओ की स्वीकृति महावीर के पहले त चली आती थी। यदि कोई कहता कि यह घड़ा है तो इसका मतलब का कि ( १) घड़ा है, (२) घडा नही है (मिट्टी है ) और (३) घडा है मा, नही भी है। घडे के अर्थ मे घडा है, मिट्टी के अर्थ मे नही भी है । इस प्रकार सत्य के तीन कोण हो सकते है.--(१) है, (२) नहीं है. (३) दोनो-नहीं हैं और हा यह विभगी महावीर के पहले भी थी। लेकिन महावीर ने इसे सप्तभगी बनाते हुए कहा कि तीन से काम चलने को नही । सत्य और भी जटिल है। इसम पार 'स्यात' और भी जोडने पडेगे। यह अदमत वात थी. लेकिन साधारण आदमी का पकड के बाहर हो गई। महावीर ने चौथी भगी जोडी और कहा, 'स्यात् अनिर्वचनीय (अवक्तव्य) है'---इसमे कुछ ऐसा भी है जो नहीं कहा जा सकता। घड़ा अणु भी है, परमाणु भी है, इलेक्ट्रोन है, प्रोटोन है, विद्युत् है । सब है और इन सवको
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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