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________________ महावीर परिचय और वाणी महावीर की बारह वर्षों की साधना अभिव्यक्ति के माध्यम की साजो साधना है। वसे पहुँचाया जा सके जो पहुँचाना है | इस सम्म ध म दो छोटे सून ख्याल म रख लेने चाहिए। यदि पशुआ के पास सम्प्रेपण करना जमीप्ट हा तो मूब हाना पडगा, वाणी खो देनी पड़ेगी, करीब करीव मूच्छित और जड-जमा हो जाना होगा। शरीर जड हागा मन जड हागा, मगर भीतर चेतना पूरी जागी होगी। अगर मनुष्य से सम्ब र जाडना है तो दो उपाय है साधना से गुजरे हए मनुष्य के साथ विना गद के सम्बध जोडे जाये और उस हारत में लाकर जिसम देवता होत हैं मौन मे कहा जाय या फिर शादा का वाणी का प्रयोग किया जाय । लेविन गन ही परड म आते है अनुभूतिया छूट जाती है। इसलिए गणघर आते हैं, मध्यस्थ आते हैं, व्याग्याएं होती है-- सब बदल जाता है, सब खो जाता है। महावीर के दाद महावीर के नहीं रह जात टोकापारो के हो जात है। महावीर न मौन म क्या का है उसे पकडन की जबरत है। महावीर के पहले जो विचारधाराएँ प्रचलित था उनका आयपरम्परा से पथव अस्तित्व नहीं था। उनम एक धारा का नाम श्रमण' था, क्याकि उसका आधार श्रम था,प्राथना नहा। इस धारा के विपरीत ब्राह्मणधारा थी जिसका विश्वास था वि परमात्मा को विनम्र भाव से प्राथना और शास्त्रविधि मे ही पाया जा सकता है। (इस पूण दीनता को प्राइस्ट ने पावर्टी आफ स्पिरिट कहा है।) आय जीवन दशन म उपयुक्त दोना धाराएँ सम्मिरित थी, परतु महावीर के बाद श्रमण धारा न अपना पथक अस्तित्व घापित किया। महावीर के पहरे वह धारा पथय न थी। इसीलिए आदिनाथ का नाम ता वद म मिलता है, लेकिन महावीर का नाम विमी हिदू ग्रय म नहीं मिलता। जना के पहले तेईस तीयकर आय ही ये आय ही पैदा हुए और आय ही मरे । य जन नहा थे। सभी श्रमण भी जन नही हो गए। श्रम और सकल्प पर आस्था रसनवाले लोगो म आजीवन भी थे बौद्ध भी थे और दूसरे दूसरे विचार भी थे। जर महावीर न एक पथक दान की घोषणा की तो श्रमणधारा स एष पथर धारा निकर पडी। इसी धारा का नाम जैन पडा । वाद्ध धारा भी थमणधारा थी। इसलिए महावीर ५ दशन से प्रभावित धारा का एक नया नाम दाा आवश्यक था। यदि गौतम ये बुद्ध तो महावीर ये जिन-विजेता । जिन १ भारत में अनेर घम-परम्पराएं रही ह । ग्राह्मण परम्परा मुस्यतया वदिय है पिसको पई शाखाए ह । श्रमण परम्परा फी भी जन, बौद्ध, आजीवर, प्राचीन सारय योग मादि पई गालाएँ है ।' पसुपलारजी, दर्शी और चिन्तन (१९५७), प०५१।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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