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________________ महावीर परिचय और वाणी की। इसके लिए उन्हें अनेक बार ऐसी अवस्था म होना पड़ा जिसम यह कहना मुस्वि था वि व जीवित है या मृत । इन अवम्याला को लाने के लिए उह कुछ और प्रयोग करने पड़े । जैसे, उनका चार चार महीन तक, पाच पाच महीन तक भूखा रह जाना बड़ा असाधारण है। 4 कुछ न साकर मी क्षीण नहीं होते। उनका शरीर पूर्ण स्वस्थ और उनका असाधारण सौदय सदा अक्षण्ण रहता। क्या कारण था इसका ? मरी दृष्टि में कारण था मूक जगत से उनका तादात्म्य और मूक अणआ का-~-मूक पदार्थों के परमाणलो का--प्रत्युत्तर । जो आदमी पास म पड़े हुए पत्थर की आत्मा को भी जगाने का उपाय कर रहा है, जो पास म लग हुए वक्ष की चेतना को जगाने के लिए सम्पन भेज रहा है, उसे अगर मारे पदाथ-जगत म प्रत्युत्तर म बहुत सी शक्तियां मिरतो हा ताजाश्चय नहा । परमाणुआ का सूक्ष्म जगत उह सीघा भोजन देता था। इसनिा महावीर के पीछे जा राम भूसा मर रहे है वे पागर हैं। वसिफ मासाहारी ह-अपना ही मास पचा रह ह । महावीर तीन चार महीन बाद कभी भोजन परत थे, वह भी इसलिए पि लाग उहें यह न पूछे वि रतन दिना तक पूखा रहना बसे सम्मव हो सवा? यह आप बस पर सके ? ममी वातें सभी का बतान के लिए नहीं होता। महावीर एक दिन भाजन कर तह वह सिफ इसलिए कि लागा को सान्त्वना हो जाय कि वे साना ले रन है। लोग यह सुनकर यचम्मा करत है नि महावीर को पसीना नही चलता मल मन त्यागने नही पडते । यति व सूक्ष्म परमाणुमा से शक्ति न रेत और उन्हें मूक जगत से सीया भोजन मिलता तो उहें भी ये सारे काय करन पउत और उनके शरीर स भी पसीना बहता । उनका भाजन इतना सूक्ष्म है कि यह शरीर में सीध लीन हो जाता है। ___ काली के एक सयामी ने जिसका नाम विशुद्धानद था एर अत्यात प्राचीन विनान का, जो एक्दम खा गया था, पुनरुज्जीवित किया। उस विमान का नाम है सूण विरण विनान । विशुद्धानर का कहना था कि भूय की किरणा स जीवन और मत्यु मीधे आ सकती है वोच में कुछ और रने की जररत नहा। पथ्या पर पाहुना पनाथ पा जगत सूय का निरणा से बंधा है। सूय अस्त हा जाय तो यह सारा श्यात मी उसी के साथ अस्त हो जायगा। इस पथ्वी पर मय यो किरणा न रह और प्राण यो जाड रसा है। इसलिए मूय न हा तो अदही आत्माए हा मरती हैं वह नहीं होगी। चांद पर अही आत्माएँ रहती है। इसी कारण अतरिक्ष यात्रिया या वहाँ कोई नहीं मिला। यहाँ देहधारी प्राणी नहा ह और न यहाँ वह स्थिति ही पैदा हुई है जिससे देह प्रकट हा सर। नात्यय या कि बाइ पाह और प्रयास कर तो वह अपनी बाणास मा मूरज वो fry को साये पो सकता है और ऐसी पिरणे जीवननायिती हा साती हैं।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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