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________________ तृतीय अध्याय मूक जगत् से तादात्म्य और सापेक्षवाद (स्याद्वाद ) डहरे य पार्ण वुढे य पाणे, ते अत पास सव्यलोए । उव्वेहई लोगमिण महत, वृद्धो पमत्तेमु परिव्वज्जा ॥ - सून० श्रु० १ अ० १२ गा० १८ १ महावार के सामने इस नाम का सबसे बडा सवाल था कि सत्य की अनुभूति की जीवन के सभी तुला तब पेद पाधा से लेकर दवा-देवताओं तक पहुंचाया जाय ? उन्होने afीवन चेष्टा का उनका स्वाद पशु पक्षिया तर यहाँ तर कि निर्जीन समये जानेवार पदार्थों तक पहुँचे । महावीर के बाद एसी योनिश वरनेवाला दूसरा आदमी नहीं हुआ । यूरोप में सात फासिस न पशुपनिया से बात करने की कोशिकी थी बार हमार युग म श्री वरविन्द ने पदाथ तत्व पर चतना वे पदन पहुँचान के लिए यत्न किए थे। लेकिन जसा प्रयास महावीर न किया वसा न पहले भी हुआ था और न बाद में हुआ । ह | I कहा जाता है कि महावीर ने साय को सावना में बारह वर्ष बिनाए। वस्तुत सत्य की अभियति लिए साधन योजन वे वप थे। आर उन्हें मापन मि अगा तब अपना अनुभूति पहुँचा सक्न म उहें सफलता मिलती है । जपनी अनुभूति वा पत्थर और मूक पशुओं तक पहुचान लिए यह आवश्यक है यक्ति परम जड आर मूक अवस्था में उतरे । तभी मूक् जगत से उसका सामनस्य हा सकता है। यदि वक्षा के साथ ताम बिठाना किमी वा अभिष्ट होता उसे किमी वक्ष के पास वठवर पूर्णतया मूव हो जाना पड़ेगा जिसस उसको चेतना बिल्कुल गात होता चली जाय । रामकरण को जड़ समाधि एना ही अवस्था में उतरन यो समाधि थी । 1 जो प्रबुद्ध व्यक्ति मोहनिद्रा में डूबे रहनेवाले मनुष्यों में घीच रहर भी ससार छोटे-बडे सभी को जननी आमा समान देगे, इस महान विश्व वा निरो अप्रमत्त भाव से सयमाचरण में रत रहे, यह मोक्षाचा क्षण करे और सवदा अधिकारी है ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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