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________________ ४४ महावीर : परिचय और वाणी कि मै ज्ञानी हूँ ? उन्होने पूछा लेकिन, आप ही तो कहा करते थे कि आत्मा अमर है। यदि आत्मा अमर है तो रोना किसलिए ? शिष्य ने कहा आत्मा के लिए कौन पागल रो रहा है ? वह शरीर भी बहुत प्यारा था। अद्वितीय था वह । तुम मेरी चिन्ता मत करो, क्योकि मैने अपनी चिन्ता छोड दी है । हँसी आती है तो हँसता हूँ, रोना आता है तो रोता हूँ। क्योकि अव रोकनेवाला ही नही है कोई। कौन रोके ? किसको रोके ? क्या बुरा है ? क्या भला है ? क्या पकडना है? क्या छोडना है ? सब जा चुका । जो होता है, होता है-वैसे ही जैसे हवा चलती है, वृक्ष हिलते है, वर्पा आती है, बादल घिरते है, सूरज निकलता है, फूल खिलते है। न तो तुम फूलो से जाकर कहते हो कि क्यो खिले तुम और न बदलियो से पूछते हो कि क्यो आई तुम । ऐसा अखंड व्यक्ति ही सत्य को उपलब्ध होता है और ऐसे अखड व्यक्ति से ही सत्य की अभिव्यक्ति हो सकती है। लेकिन अखड हो जाना ही सत्य की अभिव्यक्ति के लिए काफी नही है। अभिव्यक्ति के लिए कुछ और करना पडता है। अगर वह और न किया जाय तो अनुभूति होगी, मगर व्यक्ति खो जायगा। तीर्थकर वैसा ही अनुभवी है । वह जो कुछ करता है, अभिव्यक्ति के लिए करता है। इसलिए महावीर की जो बारह वर्प की साधना है वह मेरी दृष्टि मे सत्य-उपलब्धि के लिए नही है। सत्य तो उपलब्ध था ही। सिर्फ उसकी अभिव्यक्ति के सारे माध्यम खोजे जा रहे है उन बारह वर्षों मे । और, ध्यान रहे, सत्य को प्रकट करना सत्य को जानने से भी कठिन है। जीवन के जितने तल है, जितने रूप है, महावीर ने उन सव रूपो तक सत्य की खवर पहुँचाने की अद्भुत तपश्चर्या की। उनका सदेश मनुष्यो तक ही सीमित न रहे--मनुष्य तो जीवन की एक छोटी सो घटना है, जीवन-यात्रा की केवल एक सीढी है-बल्कि पत्थर से लेकर देवताओ तक पहुँच सके, इसकी सारी व्यवस्था उन्होने की। मेरी मान्यता है कि महावीर की साधना अभिव्यक्ति के उपकरण की खोज की साधना है जो कठिन है, वहुत ही कठिन है। प्रश्न उठता है कि यदि महावीर ने अभिव्यक्ति के माध्यमो की खोज इस जन्म मे की तो फिर उनके पिछले जन्मो की साधना क्या थी जिससे उनके वधन कटे और उन्हे सत्य की उपलब्धि हो सकी ? इस सम्बन्ध मे स्मरणीय है कि तप या सयम से वयनो की समाप्ति नही होती, बवन नही कटते। तप और सयम कुरूप वधनो की जगह सुन्दर वधनो का निर्माण भर कर सकते है । लोहे की जजीरो की जगह सोने की जजीरे आ सकती है, किन्तु जजीर नही कट सकती। इसका कारण यह है कि नयम और तप करनेवाला व्यक्ति वही है जो अतप और असयम कर रहा था।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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