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________________ महावीर परिचय और वाणी ४३ होन की काशिश करते हैं। भागी त्यागी हान की कोशिश करता है, रोज रोज पटके खाता है, चढता है गिरता है और परेशान होता है। वह भूल जाता है कि जिसस हमारा सघप हाता है उसका दम स्वीकृति द बैटन हैं। दुश्मन की छाती पर कोई पर तर वटा रह सकता है ? सभी तो उसको छाती छोग्नी ही पड़ती है। और दुश्मन पाई ऐसा-वमा दुश्मन नही अपना ही हिस्सा है। आप ही दवानवाले, आप ही दवनवाले। जिस आप दवात हैं वह ता विथाम कर देता है और जो दवाता है वह थव जाता है। इसलिए जा चीज दवती है वहीं कुछ दिना म दवान रगती है। इसलिए यार रह-रग तो हारेंगे, दवाएगे ता गिरेंगे। कोशिश हानी चाहिए दद से बाहर होन की असह बनन को इप्टा बनन की। जबड व्यक्ति ही दन में समय हाता है, तीयकर-जसी पियति म हो सकता है । मेरा कहना है कि महावीर के गम्ब य म जो आज दिसाद पड़ रहा है वह हमारी भ्रातिया का गटठर है और इस कारण गटठर वना है कि हम वमी चीजा के पास जाकर नहीं देखते---सदा दू से दसते हैं। हम चीजा यो पास स दख भी नहीं मक्त, क्यापि पास स देखना हो तो उनसे सुद ही गुजरना पड़ेगा। इस कारण महावीर के मम्यप मजा भी रिखा गया है वह बाहर से पीचा गया चित्र है। और बाहर से यही दिखाई पडता है कि महर था, इहाने महल छोड दिया धन था, उहाने घन छोड दिया, पत्नी थी, उहाँने पत्नी छोड दी, प्रियजन थे, निक्ट के रिश्तेदार थ, उहनि सय छाड दिए । एप जन मुनि थे। वीस वप पहल उहनि घर-गहस्यी त्याग दी थी। एक दिन उहें एप तार मिला जिसम रिसा था दि उनकी पत्नी का देहान्त हो गया है । मुनि 7 तार पर यहा-~चरो शशट छूटी । जाहिर है कि पली पी पट अभी भी यावी थी। मुनि के चित्त के मिनी न पिसी ता पर यह वतमान थी। पली पो छाडा स सझट या अत नहीं हुआ था। हो सस्ता है, मुनि न यह मी चाहा हा रि पत्नी मर जाय, क्यापि उसवा यह पहना कि 'चलो बाद छुरी उसपी भीतरी आकाक्षा का सबूत भी हो सकता है । एसे मयासी अग्रही नहीं हात । उनरा चित्त उता ही राडित होता है जितना किमो अनागो गहम्य था। इसलिए एस मनि यो समझना आसान है क्यापि हमारा चित्त मी एमाही पटित है। हम भी दुद म जात हैं। एक दूगरी घटना गुनाहूँ। तिप्य अपन गुर की मत्यु पर रो रहा था। चौर, पयामि व उसे पानी समान रह थ । उनम युष न उस गिप्य से पहा मह आपन पर रहे है ? आपया प्रतिष्ठा पर पाना पिर जायगा । आप-और रात है ? गा और रारा ! गिय मांग पर उटाई और यहा में ऐस पानी से छुटकारा पाहाजा रा भी गर । न पान पोगोन भाजा रिएको है। यदि मा एा नया ययन है तो म हा चाहिए यद । ममहा रिया
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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