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________________ महावीर परिचय और वाणी ४१ मेरा है। जव इस प्रकार इस महल के मालिक बदर जाते हैं ता इमे सराय बना ती उचित होगा । मैं फिर आऊगा कभी। पक्का है तुम मिलागे ? इब्राहीम न उस फकीर के पैर छुए और कहा तुम ठहरो में जाता हूँ। मुझे यह दिसाई पट गया कि यह महल नही, मराय है। सराम या कोई त्याग करता है? नही, सराय म ठहरता है और विदा हा जाता है। अपन बम | साथ ही महावीर ऐसे बाघ को रेपर पेश हुए थे। एस वाय के लिए सम्पत्ति के त्याग की जरूरत नहीं, जम्बरी है सम्पत्ति के सत्य का आमव । प्रश्न साह और त्याग का नहीं, प्रश्न सत्य के अनुभव का है। यह मेरा महर नही, सराय है'--ऐमा वाय त्याग बनता है ऐसा त्याग किया नहा जाता। इसलिए एसे त्याग ये पीछे कर्ता का भाव नहीं होता और जिस कम के पीछे पना का भाव इक्टठा नहीं होता उस कम स काई वधा पैदा नहीं होता। यानी क्म पमी नहीं बांधता। जिस वम से पर्ता का भाव पदा होता है वही कम वचन का कारण हो जाता है। यदि कोई महावीर से उनके त्यागी हान की बात पहता तो ये हसत और कहतक्सा त्याग ? विसका त्याग ? जा मरा नही था वह नहीं था। यह मैंन जात लिया। त्याग बस र ? त्याग दोहरी भूर है-~भोग की दोहरी भूल। ____मैं कहता हूँ महावीर जसे यक्ति का त्यागी समयने की भर भी नहा करनी चाहिए । सिप अनानी त्यागी हो सकते है पानी नहीं । जसरी बात तो यह है कि नान ही त्याग है। नानी का त्यागा होना नहीं पडता, इसके लिए उसे प्रयास करन की जरूरत नहीं। अज्ञानी को त्याग करना पड़ता है, श्रम उठाना पडता है, सक्रप वाघना पड़ता है। जिस चीज हम द्रष्टा हो जाते हैं वह चीज सपना हो जाती है भार जिस चीज के वर्ता हो जान हैं, वह हमार लिए सत्य हो जाती है चाह वह सपना ही क्या न हो। चाहे जीवन सत्य हो क्या न हो जय हम इप्टा हो जात है तो वह सपना हो जाता है। महावीर त्यागी नहीं, द्रष्टा ह । सम्पत्ति के त्याग या प्रश्न ही नहीं उठता पाकि सपने की भी कोई मम्पदा हाता है ? सपने में कोई त्याग होता है ? भोग भी सपना है त्याग मी सपना है, क्याकि दोनो हालत मे क्ता मौजद है। इस ए रानी न त्यागा है न भोगी वह सिफ द्रष्टा है । एसा नहा कि उसके जीवन म पेवर त्याग वच रहता है और भोग विदा हो जाता है। मांग और त्याग एप ही सिनम के दो पहलू है-यही दीस जाता है। यही नाा वीतरागता है। अगर मैं क्ता नही है, क्र प्टा है. तो वीतरागता फरित हो जायगी। अगर जीवन वा एव कोना नो सपनागे जाय तो वह सपना पूरे जीवन पर फल जायगा । यहाँ जिदगी के जो अनुभव है व सब ये सव समन है, पड खड़ नहा हैं। अगर बेटा असत्य है तो वाप
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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