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________________ ३३ महावीर परिचय और वाणी __ से भी सोए हुए गुजरते हैं । कृष्ण और महावीर का माग इस विपरीत है । वह दूसरा माग है जिस पर चरनवाल लोग प्रत्यक किया जागकर करते है। ___ यह स्वाभाविक है कि महावीर जसा व्यक्ति हमारी समझ म मुपिल से आए। व स्त्री से न तो भागते हैं और न उमम उत्सुक है न उ मुस हैं और न विमुग। न तो राग म ह और न विराग म । इसलिए उत् वीतराग कहा गया है। राग और विराग एव ही सिक्के के दो पहलू हैं। हो सकता है कि हम राग का दुश्मनी म विरागी हो जायें या विराग की दुश्मनी में रागा बन जाय । लकिन वीतराग वह है जिसम न राग है और न विराग, जो सहज सडा रह गया है-न भागता है गौर न माता है न बुलाता है और न भयभीत है। महावीर के पीछे चरनवाला साधक राग से विगग को पकडता है । वह अपन राग को बदलता है विराग मे। विरागी सिफ उल्टा रागी है-शीपासन करता हुआ रागी। रागी बंधन को आतुर है विरागी वधन से भयमीत है। लेकिन वचन दोनो के केद्र म है। दोना की नजरों म बधन है। वीतरागी का पहचानना बहुत मुश्किल है, क्याकि जान पहचा बटसर स उमकी ताल नहा हा सक्ती और वह रागी विरागी के चिर परिचित वर्गों के बाहर पड़ जाता है। हद को हम पहचान सक्त है निद्वन्द्व को नहीं द्वत का पहचान सकते है, नद्वत का नहीं । महावीर के सताए जाने का जो लम्वा उपश्रम है उसम भी उनकी वीनगगता हो वारण है। विरागी को इस मुल ने कभी नहीं सताया-रागी विरागी का ममी सता भी नहीं सकते, उरटे वे सदा विरागी को पूजते है। लेकिन वीतरागा को दोना सताते हैं, क्याफि वे उस बेशन आदमी का समझ नहीं पात । महावीर का जमाना नहावीर को बिलकुल पहचान न सका। वे अपने युग के समी मापदडो स लग खड़े थे, इमरिए उतारना, उन पर लेविर लगाना मुश्किल था। ___महावीर मते थे वेगत थे इसलिए उन्हें पहचाना न जा सका। पूछने पर भी किव कान है वे निरतर मौन रहत । गाय वा चरवाहा अपनी गाय और चल उनक पास छोड जाता और कहता-दसना इन्ह म भा लौट कर जाता हैं मेरी गाय सा गई है। महावीर नहीं रहते शिम नहीं देखेगा। वे यह भी नहीं वहत किम दखूगा। वे निश्चल रहत माना पुछ सुना ही नहीं। चरवाहा लौटकर देसता विन ता उमका गोए है न बाया पही पता है। वह महावीर स पूछता, रेपिन व वैम ही पडे रहत । वह मारपीट करता और महावीर उस सह एत । थाही देर बाद गौएँ रोट आती घर वापस था जाने । चरवाहा दुखो हाता आर महागीर स क्षमा मांगता । तब भी व बमे ही खडे रहत । ऐसे यक्ति को पौन समन पाता? पीठे जिहाने शास्त्र रचे, उहाने कहा-महावीर वडे क्षमागील य । पाई मारता था उन्हें तो वे उसे क्षमा पर देन थे । लेकिन गास्न रचनेवाल उहें ममप न पाए। क्षमा वहीं करता है जो प्राय परता है । क्षमा क्राप के बाद का हिस्सा है ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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