SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ महावीर : परिचय और वाणी पक्ड की अपेक्षा अधिक गहरी है। लेकिन सत्य की अभिव्यक्ति के लिए उने तथ्य छोड देने पड़ते है और कहानी गढनी पड़ती है। मेरी दृष्टि मे तथ्यो का भी मूल्य हे अगर वे सत्य को बता पाएँ, अन्यथा उनका कोई मुल्य नहीं। सत्य की यात्रा में वे मील के पत्थर है, जो गतव की ओर लटयकरते है। लेकिन कुछ नाममज लोग मील के पत्थरो को ही पकडकर रुक जाते है, उन्हे ही अपना लक्ष्य समझ लेते है। हो सकता है कि मेरी बाते आपको कुछ विचित्र लगे। यह कैसे हो सकता है कि कोई मैथुन की प्रक्रिया में गुजरे, उनसे बेटी पैदा हो और वह स्वय वामना और तृप्णा मे मुक्त रहे ? इसके उत्तर मे में कहेंगा कि यदि भोजन द्रष्टा के रूप में किया जा सकता है तो मैथुन क्यो नही? हम किसी भी बिया के मामी हो सकते है, चाहे वह क्रिया अन्तर्गामी हो या वहिगामी। असल मे जो भोजन गरीर मे जाता है, वही मैथुन मे गरीर से बाहर निकलता है। अगर चेतना साक्षी हो सके तो बात समाप्त हो जाती है, कर्ता मिट जाता है। केवल शरीर एक उपकरण वन जाता है। लेकिन साधारणत मैथुन मे आदमी विलकुल सो जाता है, वेहोग हो जाता है। तब केवल शरीर ही उपकरण नहीं बनता, भीतर आत्मा भी सो गई होती है, मच्चिन हो गई होती है । और मैथन का विरोध केवल इनीलिए है कि जात्मा की सर्वाधिक मूर्छा मैथुन मे ही होती है। अगर आत्मा अमूच्छित न्ह जाय तो वात खन्न हो गई। सुनना भी एक क्रिया है। अगर तुम साक्षी हो जाओ तो पाओगे कि सुनने के साथ-साथ तुम दूर खड़े होकर सुनने को देख भी रहे हो। इसी तरह यद्यपि मै वोल रहा हूँ, फिर भी पूरे वक्त यह जानता हूँ कि मेरे भीतर अबोला भी कोई खडा हे। असल मे जो अबोला खडा है, वही मैं हूँ । स्वास चल रही है और अगर मैं इसे देख रहा हूँ तो स्वास का चलना या न चलना जगत् की विराट् व्यवस्था का हिस्सा हो गया और मैं क्रिया से भिन्न हो गया । हाँ, मैथुन मे साक्षी होना सर्वाधिक कठिन है । इसका कारण है कि यह एक ऐसी क्रिया हे जिसे प्रकृति ने मनुष्य के ऊपर नही छोडी। यदि मनुप्य के ऊपर छोड दी गई होती तो वह ऐमी ऐब्सर्ड, ऐसी व्यर्थ और वेमानी क्रिया कभी न करता। इसीलिए प्रकृति ने इसके लिए बहुत गहरा सम्मोहन डाला है उसके भीतर। इसी सम्मोहन के प्रभाव मे तारा खेल चलता है। इसीलिए वह अपने को विलकुल विवश पाता है। लेकिन यह सम्मोहन तोड़ा जा सकता है और इसको तोड़ने की विधियाँ है। सबसे बड़ी विधि साक्षी होना है। कृष्ण और महावीर-जैसी आत्माएँ मैथन की प्रक्रिया मे भी निरपेक्ष द्रप्टा-मात्र रहती है, कर्ता नही बनती। गोपियो से घिरा रहना कृष्ण के लिए एक लीला है, खेल है, जिससे उनका कोई मतलब नहीं। ससार मे जीने के दो ही रास्ते है चाहे तो सोकर जियो या जागकर जियो। सोकर जीनेवाले भोजन भी सोकर करते है, कपडे भी नीद मे पहनते है, प्रेम और सम्भोग
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy