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________________ महावीर : परिचय और वाणी से जैनियो को नुकसान होगा, महावीर यो धारा का अर्थ खो जाने ने मानव-जाति __ का नुकसान होगा। इसलिए हमें जैनियों के नुकसान की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। मनुप्प-जाति की समृद्धि मे महावीर आगे भी मार्यक हो, यही मेरी बामना है । ___मैंने कहा है कि महावीर की नावना पूर्ण संकल्प की नाधना है । परन्तु जैन-परम्परा उसे दमन को नायना कहती है। दमन गब्द मार्थक नहीं, सालान है। अब फ्रायड के बाद जिम नाचनापद्धति ने दमन का प्रयोग क्गि, वह पनि उस गब्द के साथ ही दफना दी जायगी। महावीर की मापना दमन की नायना नहीं है । अनल मे दमन का अर्थ ही और था तब । फ्रॉपट ने पहली बार दमन को नया अर्थ दिया। उन दिनो 'कायालेग' गब्द का हम उपयोग करते थे । वह अब नी मार्गक है। अगर महावीर के गरीर को देखो नो तुम्हे पता चल जायगा कि तुम्हारी कायाफ्लेग की बात नितान्त नासमझी की बात है। हां, अपने मुनियो को देखो तो पता चलता है कि कायाक्लेग नच है। नहावीर की काया को देखकर लगता है कि अपनी काया को नँवारनेवाला ऐना आदमी अन्यत्र हुआ ही नहीं। ऐसी मुन्दर काया न तो बुद्ध के पास थी और न पाइन्ट के पान । इतना सुन्दर होने की वजह से ही वे नग्न खडे हो सके। अमल मे नन्नता को छिपाना कुरूपता को छिपाना है। हम सिर्फ उन्ही अगो को छिपाते है जो कुल्प हैं। ___महावीर कायाक्लेग किसी और ही बात को कहते हैं। जो सुबह घटे नर व्यायाम करता है, वह आदमी नी कायाक्लेग ही करता है। वह पमीन-पनीने हो जाता है, गरीर को थका डालता है। और एक वह भी कायाक्लेग करता है जो एक कोने मे विना खाए-पिए, नहाए गए पड़ा रहता है। लेकिन जहाँ पहला आदनी काया के स्वास्थ्य और नार्य के लिए ही कायाक्लेग करता है, दूसरा आदमी काया का दुश्मन है और उसका कायाक्लेश शरीर को कुरूप बना देता है । महावीर कहते है कि काया का क्रम काया के लिए ही है। काया को सुन्दर-स्वस्थ रखने के लिए श्रम उठाना ही पड़ेगा। इनी प्रकार 'उपवास' का अर्थ है, अपने पास रहना, आत्मा के पास रहना, जैसे 'उपनिपद्' का अर्थ है गुरु के पास बैठना । लेकिन अब उपवास का अर्थ अनगन-'न खाना' हो गया है। न खाने पर जोर देना दमन पर जोर देना है। चार-चार महीने तक कोई आदमी विना खाए नहीं रह सक्ता, लेकिन उपवास मे रह सकता है। उपवास का मतलब है अपनी आत्मा में इतना लीन हो जाना कि शरीर का बोध ही न रहे। गरीर का पता हो तो भोजन की आवश्यक्ता होती है। लेकिन उपवास मे दिन बीत जाते हैं, राते बीत जाती है, परन्तु गरीर का वोध नहीं होता। उपवास से अनगन विलकुल उलटा है। दोनो ने भोजन नहीं किया जाता, लेकिन जहाँ अनशन मे आदमी गरीर के पास ही रहता है, उपवास मे उसे गरीर की मुधबुध
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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