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________________ २९९ महावीर परिचय और वाणी आनी शुरु हो जाती है । शरीर के साथ तादात्म्य बढ जाता है तो मूर्छा बढ जाती है, शरार के साथ तादात्म्य टूट जाता है तो होश बढ़ता है। महावीर का सारा का सारा प्रयोग जागरण अमूर्छा मार 'अवेयरनेस का है। महावीर बहन हैं कि चूकि भोगन मा को बटाता है, तद्रा पैदा करता है इसलिए यदि भोजन न लिया गया हो तो इमसे उल्टा परिणाम हाता है, हाश बढेगा, जागरण वढेगा। (१३) महावीर ने यह अनुभव दिया कि जब शरीर म भोजन बिर कुल नहा होता तो प्रना अपनी पूरी शुद्ध अवस्था म होती है क्यावि तब सारे गरीर की का मस्तिप्प हो जाती है। पेट के लिए पचाने की कोई जरूरत नहीं रह जाता । महावीर कहते ये भोजन बिलकुर बद हो, गरीर की सारी क्रियाएँ बद हा शरीर क्सिी मूर्ति की तरह ठहरा रह जाए, हाथ भी न हिले उँगरिया भी व्यथ न हिले, सब प्रिया मिनिमम पर आ जाए तो शरीर की पूरी कर्जा जो अलग अलग बेटी है, मस्तिप्व' को उपरब्ध हो जाती है और मस्तिप्प पहली दफे जागने में समथ होता है । अगर महावीर न भाजन म भी शाकाहार वा पसद दिया, मासाहार या नहा तो यह सिफ अहिंसा के कारण नही । इसस भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण कारण दूसरा था और वह यह था कि मासाहार पचने में ज्यादा शक्ति मांगता है और बुद्धि की मूग वाती है। ___यदि अहिंसा अकेला पारण होता ता महावार बह सकते थे कि मरे हुए जानवर रेने म को हज नहा है। बुद्ध न ता आना दे दी थी कि मरे हुए जानवर पा मास गाया जा सकता है। रेवित महावीर ने मरे हुए जानवरों का मास सान को भी आना नहा दा, क्यापि उनमा प्रयासन मात्र महिमा नहीं है। महावीर वा गहरा प्रयोजन यह था कि माम पचने में ज्यादा शत्ति मागता है गरीर और पेट का ज्यादा महत्त्वपूर्ण कर जाता है। इससे मस्तिष्क की ऊजा क्षीण होती है और तदा गहरी होती है। यदि मस्तिप्प म कजा का प्रवाह बना रहे तभी आप जाग्रत रह सक्ने हैं। इसलिए इसे बाह्य तप बहा आतरिय तप रहा। जो आदमी नआन्तरिय तप पा उपर प हो जाया वह नाद म भी जागा रगा। तो महावीर न परा है कि यदि चेतना का बनाना है ता जब गरीर म भोगन नहीं है तभी यह आसानी में हो सकता है। (१८) रेक्नि कुद्ध रोग जब भाजन छाडत हैं तब उनकी चेतना नहा घटती रेप मा का पितन बढ़ जाता है। यकै नोजन छोड दना पुष्य नही है । नगर भापो सापा है विसिफ भाजन छाड देना ही पुण्य है तो भोजन छापर आप भाजन का चितन करा रहेंगे। ध्यान रह विभाजन चिनन समान ही बेहतर है। भाजपा पितन भाग से बदतर है यादि ताजा तो पट परता है और नितन मस्तिप्र । मस्तिप्प पा काम भाज या महा है। अच्छा होगा विनाप पैट
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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