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________________ नवम अध्याय तप की वैज्ञानिक प्रक्रिया खवेत्ता पुवाम्साइ सजमेण तवेण य । सव्वदुक्खपहीणटठा, पक्कमति महेसिणो ॥ -उत्त० अ० २८, गा० ३६ धम विनात ही नहा, परम विज्ञान है। जहा विनान केवल पदाय का स्पश कर पाता है, वहाँ घम उस चैतय का भी जिसका स्पश करना असम्भव मालूम पडता है। विज्ञान वर पदाथ को बदल पाता है, नए रूप दे पाता है, धम उम चेतना का मी रूपातरित करता है जिस स्सा भी नहीं जा सकता छुआ भी नहा पा सकता। इसलिए घम परम विनान है। विनान का लण्य होता है उस प्रक्रिया, पद्धति या यवस्था को जानना जिसस कुछ किया जा सकता है । बुद्ध कहते थे कि सत्य का अथ है वह जिससे कुछ किया जा सके। जो सत्य नपुमर है जिसस कुछ नहीं हो सकता, जो मिफ सिद्धात है, वह सत्य व्यथ है। सत्य वही है जो कुछ कर सके-~जो काइ यदराहट, कोई प्राप्ति, काई परिवतन ला सके । धम एसा । सत्य है। धम चितन नहीं है और न विचार, धम आमू रूपातरण है, म्यूटेगन है। तप धम के रूपा नरण की प्रप्रिया का प्राथमिक सूत्र है। (१) जगत म जा भी हम दिखाई पदता है, वह वैसा नहा है जैसा दिखाई पडता है। जा भी दिखाई पडता है यह स्थिर, ठहरा हुआ या तमा हुआ पदाथ है। लेकिन विनान कहता है कि इस जगत म काइ भी चीज ठहरी हुइ वा जमी हुए नहा है, जा भी है वह ग यात्मक है डाइनैमिव है। जिस कुर्सी पर भाप बठे हैं यह पूर समय नदा के प्रवाह की तरह वही जाता है। अगर गति अधिक हा जाय तो चीजें ठहरी हुई मालूम पडती ह। अधिक गति के कारण, ठहराव व वारण नहीं। आपकी कुर्सी पा एक एव परमाणु जपन केन्द्र पर उतनी ही गति से दौड रहा है जितनी गति से सूप या किरणें दौडती है--एक सेकड म एक राय रियासी हजार मील । परमाणुना का तौन गति की वजह से आप बुसी स नहीं गिरते। (२) याद रहे रि यह गति मा बहुआयामी है मल्टी डाइमे शनल है। आपको १ महषिगण सपम और तप द्वारा जाने सभी पूय धर्मों को क्षीग फरके सभी दुपा मे हित मोक्षपद को पाने के लिए प्रयत्न करते हैं।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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