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________________ महावीर परिचय और वाणी २६५ नही । वे देखते हैं जीवन वी बनत श्रृंखला का और जानते हैं कि यहा प्रत्यव कम पीछे मे जुडा है आर भाग से भी । हम जिन्दगी वो अववार और प्रवाश म तोड दत हैं | महावीर ऐसा नही कर सक्त, क्योंकि उह पता है कि पथ्वी पर अच्छ और बुर का चुनाव नही है वम घुरा और ज्यादा बुरा का ही चुनाव है । वे जानते हैं कि इस जीवन में चौबीस घंटे अनेक तरह की हत्याएँ हो रही हैं। जन आप चलत हैं मास लेते हैं भोजन करते हैं तब भी आप हत्या कर रहे होत हैं । जब आपरी पलक झपती है, तब हत्या हो गई होती है । लेविन जब कभी कोई किसी वी छाती म छुरा भाक्ता है तथा हम हत्या दिखाई पडती है । (२) महावीर देखते हैं कि जीवन को जा व्यवस्था है वह हिंसा पर ही खड़ी है | यहा चोवीस घटे प्रतिपर हत्या ही हो रही है। मेरे एक मित्र का सयाल है कि महावीर जहां रहा जाते थे वहीं वहा अनेक अनेक मोला तक बीमार लोग तत्काल चग हो जाते थे | मर मित्र को बीमारी के पूर रहस्या का पता नहीं है । जब आप बीमार हात है तो अनेक कीटाणु आपने भीतर जीवन पात है । अगर महावीर वे जाने से आप भल चगे हो जायेंगे तो हजारा कोटाणु तत्काल मर जायेंगे। इस लिए महावीर इस वयट मे पडने से रहे । यह ध्यान रसना और यह भी कि आप कुछ विशिष्ट सा महावीर नही मानत । यहाँ प्रत्यव प्राण वा मूल्य बराबर है, हर प्राण का मूल्य है । थाप उतन मूल्यवान नहीं हैं जितना आप साचते हैं । आपक गरीर म जन किसी रोग के कीटाणु पत्ते हैं तब उन्हें पता भी नहीं होता कि आप भी है | आप सिफ उनका भाजन होते हैं । महावीर के लिए जीवपणा ही हिंसा है हत्या है। वह जीवपणा किसको है, इमका सवाल नहीं उठता। जो जाना चाहता है, वह हत्या घरगा । ऐसा भी नही कि जो जीवेपणा छोड़ देता है उससे हत्या व द हो जाती हो । जब तब यह जिएगा तब तक उससे हत्या होती रहेगी । मान प्राप्ति के बाद महावीर चालीस वप जीवित रह। उन चालीस वर्षों म जब वे चले हारा तो कोइ जरूर भरा होगा, उठे होगे तो कोई जरूर मरा होगा, यद्यपि ये एतन गयम से जीवन यापन करत थे कि रात एक ही वरवट साते थे दूसरी करवट नही रत थे । रविन सांस ता ऐनी ही पती हे और वाई न कोई मरता ही है । हम यह सवत हैं विषूदपर मर वयो नहा गए ? अपन को समाप्त हो क्या न घर दिया ? लेकिन जब अपन को समाप्त करेंगे तब उनके शरीर मे पलनेवाले जावा का या होगा ? इसलिए हिमा या सवाल उतना आसान नहीं जितना कि आपका सीखें देती है । अगर महावीर किसी पहाट से कूदकर अपने को मार देते ता उाव दशरीर म पनवाले सात बरा जोवन भी नष्ट हो जात । हत्या प्रतिपर चल रही है । प्रत्यक प्राणी जीना चाहना है, इसलिए जब उग
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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