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________________ पष्ठ अध्याय समस्वरता और सम्यगाजीव जया व पूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो ।' -दा० चू० १, गा० ४ एक मित्र ने पूछा है कि महावीर रास्ते से गुजरते हो और किसी प्राणी की हत्या हो रही हो तो महावीर क्या करेंगे ? किसी स्त्री के साथ बलात्कार की घटना घट रही हो तो महावीर क्या करेंगे ? क्या वे ऐसा व्यवहार करेने जैसे कि वे अनुपस्थित हो ? इस सम्बन्ध मे थोडी-सी वातें समझ लेनी चाहिए । एक तो यह कि हत्या मे हम जो देख पाते है, वह महावीर को दिलाई न देगा । जो महावीर को दिखाई पडेगा उसे हम देखने मे असमर्थ होगे । इस भेद को समझ लेना जरूरी है। हम मोचेंगे कि कोई मारा जा रहा है । लेकिन महावीर जानते हैं। कि जीवन का जो भी तत्त्व है वह मारा नही जा सकता, वह अमृत है । दूसरी बात- किसी की हत्या होते देख हम सोचते हैं कि मारनेवाला ही जिम्मेवार है, जबकि महावीर कहेंगे कि जो मारा जा रहा है वह भी बहुत गहरे अर्थो मे जिम्मेवार हैं, हो सक्ता है कि वह केवल अपने ही किए गए किसी कर्म का प्रतिफल पा रहा हो । (१) हमे मारनेवाला दोपी और मारा जानेवाला हमेशा निर्दोप मालूम पड़ता है । हमारी दया ओर करुणा उसी की तरफ बहेगी जो मारा जा रहा है । महावीर के लिए ऐसा जरूरी न होगा । उनकी दृष्टि बहुत गहरी है और वे जानते है कि कोई भी कर्म अपने मे पूरा नही है । हो सकता है कि जो मार रहा है वह केवल एक प्रतिकर्म पूरा कर रहा हो, क्योंकि इस जगत् में कोई अकारण नही मारा जाता । किसी का मारा जाना उसके ही कर्मो के फल की श्रृंखला का हिस्सा होता है । इसका यह अर्थ नही कि जो मार रहा है वह जिम्मेवार या दोपी नही है । लेकिन हमारे और महावीर के देखने मे फर्क पडेगा । जब भी हम देखते है कि कोई मारा जा रहा है, तो सोचते है कि निश्चित ही पाप हो रहा है, वुरा हो रहा है, कारण कि हमारी दृष्टि बहुत सीमित है । महावीर की दृष्टि इतनी सीमित १. जब मनुष्य संप्रमी होता है, तब पूज्य बनता है; परन्तु जब सयम से च्युत होता है तव अपूज्य बन जाता है ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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