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________________ २५६ महावीर : परिचय और वाणी तुम्हारे चारो तरफ हो रहा है, उसे होने देना - वह अपने आप उठेगा और गर जायगा । उसके उठने और गिरने के नियम है। तुम बीच मे व्यर्थ मत जाना । (२२) लाओत्से ने कहा है कि श्रेष्टनम अग्राद वह में जिसकी प्रजा को पता ही नही चलता कि वह है भी या नही । महावीर की असा का वयं है--ऐगे हो जाओ कि तुम्हारे होने का पता ही न चले । लेकिन हमारी सारी चेष्टा यह दिखाने में लगी है कि हम भी कुछ है। हम चाहते है कि नारी दुनिया का ध्यान हम पर ही केन्द्रित के सभी हमे दे । यहीं हिमा है | पूरे वक्त हमारा यह चाहना कि ऐसा हो, ऐसा न हो, हिता है । यदि हम दौड रहे है कि वह मकान मिले, वह वन-यन और पद मिले, तो हमे हिंसा में गुजरना ही पडेगा । वासना हिंगा के बिना नहीं हो सकती । सलिए समझिए कि आदमी जितना वासनागरत है, वह उतना ही हिंसक भी है, वह जितना बासनामुक्त है, उतना ही अहिंसक भी। यदि आपमें मोक्ष पाने की वासना है तो आपकी अहिना भी हिंसक हो जायगी । बहुत से लोगो की अहिंसा हिमक है । जहिता भी हिंसक हो सकती है । जो मोक्ष की वासना से अहिंसा के पीछे जायगा, उसको प्रहिसा हिसक हो जायगी । इनलिए तथाकथित अर्हिमक नावको को अहिनक नही कहा जा सकता । महावीर कहते है कि पाने को कुछ भी नहीं है । जो पाने योग्य है, वह पाया ही हुआ है । वदलने को कुछ भी नही है, क्योंकि यह जगत् अपने ही नियमो से बदलता रहता है । क्रान्ति करने का कोई कारण नहीं है, कान्ति होती ही रहती है । कोई क्रान्ति-वान्ति करता नहीं, कान्ति होती ही रहती है । लेकिन क्रान्तिकारी को ऐना लगता है कि वह क्रान्ति कर रहा है। उसका यह दावा उन तिनके के दावे की तरह हे जो सयोग से सागर की एक बड़ी लहर पर चढ जाता है और कहता है कि लहर मैंने ही उठाई है 1 Se
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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