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________________ २४९ महावीर परिचय और वाणी और कुछ भी पान का प्रयास । अधम या अय है-म्वय का छोडार अय पर प्टि। सच पूछि ता हमारी दष्टि सदा दूसरे पर रगी हाती है, यहां तक निम अपनी गरल भो रेयते हैं तो वह भी दूसर ये रिए। धम ता स्वय को सीधा चाहन से उन्पन होता है क्याकि धम या अथ है--स्वभाव, 'दि अस्टीमेट नेचर । (३) सात्र न पहा है वि दि अदर इ7 हेल , अयात यह जो दूसरा है वही नव है हमारा। 'दूसरा नक है, महावीर यह भी नहीं रहत, क्यादि इतना सहन म भी हमरे का चाहने की आकाक्षा और फिर निफरता छिपी है । दूसरा नर इमारिए मालूम पडना है यि हमन दूसरे को म्बा मातार खोज की। म दूसरे के पीछे गए माना वहा-उसके पाम-~-पग है। साग बहता है कि दूसरा नर है क्याधि उसम स्वग खोन की कोशिश पी गर है। जब स्नग नहीं मिलता तो वह व्यक्ति र मालूम पटता है। महावीर नहीं पहत विदूसरा नक है। यह जानना वि दूसरा नक है, दूसरे म स्वग का मानन स शिवार पड़ता है। अगर मैंन दूसरे से कमा सुम नही चाहा नो मुये दूसरे स कमी दुर नहा मिट सकता। हमारी अपेक्षाएं ही दुस बनती है । अपनाआ का भ्रम जब टूटता है तब निराशा हाथ लगती है। इसलिए दमरा नक नहा है। चनि तुमन दूमर को स्वग माना, इसलिए दूसरा नप हो जाता है। लेकिन तुम तो स्वय स्वग हो । स्वय को स्वग मानन को रूरत नहीं है । स्वय का म्वग होना स्वभाव है। महावीर का वक्त य बहुन पासिटिव है। वे कहते हैं धम मगल है स्वभाव मगल है, स्वय का होना मान है और स्वयं को मानने की जररत नहीं है कि मा है। ध्यान रह, मानना हमे यही पडता है जहाँ नही हाता । कल्पनाएं हम वहा करनी होती है जहा कि सत्य कुछ और है। स्त्रय को सत्य धम या मानद मानने की जरूरत नहीं है । म्यय म है मोग-यह तन दिखाई पडना शुरू हाता है, जब ध्यान वी चारा दूमर से हट जाती है और स्वय पर लौट जाती है। (४) महावीर की यह घोपणा कि धम मगर है, कोई परिसत्पनात्मक सिद्धात नहा है और न यह कोई दासनिस स्तम है। जिन अब म होगा, काटा बट्रेड ग्मर दानिक हैं उम अथ म महावीर दाशनिय नहीं हैं । महावीर का यह वक्तव्य मिफ एक अनुभव एक तथ्य की सूचना है। महावीर सोचत नहा कि धम मगर है वानते हैं कि घम मगल है। अगर पश्चिम म विसी दाशनिक' ने यह कहा हाना तो दूसरा वक्त य हाता--क्या? हाई ? लेकिन महावीर का दूसरा वक्तव्य ह्वाई या नहीं, ह्वाट का उत्तर देता है । वे कहत हैं-धम मगल है । कौन सा पम? लाहिंसा स तमो तथा । यदि अरस्तु ऐसा महता तो वह तत्काल बताता कि मैं घम मा मगल क्या कहता है। महावीर कोई कारण नहा देत । वस्तुन अनुभूति ५ लिए कोई प्रमाण नहा हाता, सिद्धान्ता के लिए तक और प्रमाण हाते हैं !
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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