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________________ तृतीय अध्याय गरण की स्वीकृति वलिपनत्त धम्म सरण पवज्जामि। ~प्रवप्रति० सधारा० मू० (१) कृष्णन गीता में कहा है सवधर्मापरित्यय मामेक शरण यज । (१८६६) "हे अजुन । तू सभी धर्मों पा छावर एप मरी ही गरण म आ।" कृष्ण जिन युग म बोल रहे थे यह युग यत्पात गरल एव मृदुल श्रद्धा पा युग था। मिमी या ऐसा न गा वि कृष्ण अवार मो यात कह रहे हैं रितू सब छोडकर मरी ही रण म आ। वस्तुत इससे ज्यादा अहमारग्रस्त घोपणा दूसरी नही हो सकती। एपित युद्ध और महावीर तय मात आन यादमी को चित्त-दाम बहुत पर हो जाता है। इसलिए जहां हिदूचिता माम एसम शरणम प्रज' या मरमार पहा है यहाँ धुर और महावीर को अपनी दृष्टि म आमूर परिवतन परसा प महावीर न नही यहा शि तुम सब छोडकरमरी गरण म आ जाओ। बुद्ध मी ऐमी यात हा पही। जो महापीर और बुद्ध पा मूब है मार पीमार है गिर पी आर मनहरी । परिहा, सिद्ध और पपरी प्रारित पम पोम्बीमार करता है-यह दूसरा घर है रणागत मा।दोही धार होगात हैं। चाह तामिद पर पि मरी गरण म आमा या गायर पर कि मैं आपणी गरम भाता है। (२) हिदू और जाविरम यही मौगिक है। हिंदू पिचार म सिर पहा आमा गरी धारप म, ना पिपारम मापन महता निमें आपरी गरा में मारा गरा पता परसामा माग बनाया गया यहा मश यार मा युग परापमा युग पामरायीर कासिमरी गरण म या जामा सारगा गा राग m fr परे मातारी। पुरमा परम्गम नी मागूर --पुरम मचागि रापम् गराम ref TIER रिमा गीर और पुरा गृर मजा पारा पायर • In और पासात पा + artोएर-गमापन पर मोई मरता है--सम् तम् १ लि (पर्या मा-पित) भी न पातर मा। ११
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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