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________________ १८८ महावीर : परिचय और वाणी नही पाया । फूल मे भी उसको पाया भीर पत्थर मे भी और जो पूछने लगा गि. किसको चढाऊँ , किसके लिए चढाऊँ ? कसे चटाऊँ ? कौन चढाए ? जब कोई अहिसा को उपलब्ध होता है तब दूसरा मिट जाता है और दूसरा तव मिटता है जब हम स्वय को जानते हैं, उसके पहले नहीं । इस खयाल मे न पडें कि मासाहार न करने से आप अहिंसक हो गए । मासाहारी जितना मला आदमी मालूम पड़ता है, गैर-मासाहारी उतना भला आदमी नहीं मालूम पडता । यह अजीव-सी बात है । इघर मै निरन्तर सोचता रहा तो मेरे खयाल ने माया कि अगर हिटलर पोडी सिगरेट पीता, घोडा मास खा लेता, धोडा वे-वक्त जग जाता, कही नृत्यगृह मे नात्र लेता तो गायद दुनिया मे करोडो आदमी मरने से बच जाते। हम यह न भूले कि मास न खाने से कोई महावीर नहीं हो सकता । अगर मासन साने से कोई महावीर हो जाय तो महावीर होना दो कौड़ी का हो गया ! जितनी कीमत मास की, उतनी ही कीमत महावीर की हो गई। इससे ज्यादा न रही। धर्म इतना सस्ता नहीं है कि हम मास नही साएँगे तो धार्मिक हो जाएंगे। मैं यह नहीं कहता कि आप मास खाएं या आप मदिरा पिये। आप मास नहीं खाते, मला है, लेकिन इस भूल मे न पडे कि आप धार्मिक हो गए, अहिंसक वन गए । आचरण से अहिंसा पकडी जायगी तो खतरनाक है । जव कोई आचरण से अहिसा को पकडता है तब सूक्ष्म रूप से वह हिंसक होता चला जाता है । जव हिंसा सूक्ष्म बन 'जाती है तब उसे पहचानना मुदिकल हो जाता है। मै आप को कई तरह से दवा सकता हूँ। एक दवाना हिटलर का भी है, आपकी छाती पर छुरी रखकर और दूसरा दवाना महात्मा का, अपनी छाती पर छुरी रखकर । आम तौर से दो तरह के आदमी होते हे-दूसरे को सतानेवाले और स्वय को सतानेवाले। दुनिया मे कोडे मारनेवाले सन्यासी हुए है, कांटो पर लेटनेवाले सन्यासी हुए है। दूसरे को भूखा मारनेवाले उतने ही अवामिक है जितना अपने को भूखा मारनेवाले। यदि दूसरो को सताना अधार्मिकता है तो अपने को सताना धार्मिकता कैसे हो सकता है ? सताना अगर अधार्मिक हैं तो इससे क्या फर्क पडता है कि किसको सताया ? महावीर की मूर्ति देखी है ? क्या आप को ऐसा लगता है कि इस आदमी ने कभी अपने को सताया होगा ? कथाएँ झूठी होगी या फिर यह मूर्ति झूठी | इन आदमी ने अपने को सताया नहीं है। मैं तो समझता हूँ कि महावीर के नग्न हो जाने मे उनका सौन्दर्य ही कारण है। कुरूप आदमी नग्न नही हो सकता। महावीर सर्वाङ्गसुन्दर है । कथाएँ कहती है कि इस आदमी ने अपने को बहुत सताया। ये सारी कथाएँ मनगढत है। यदि ऐसी नही है तो हमे महावीर की मूर्ति बदल देनी चाहिए। असल मे इन कथाओ की रचना आत्मपीड़को ने की है। ऐसे आत्मपीडक व्यक्ति महावीर के आनन्द को भी दुख वना लेते हैं, उनकी मौज को त्याग समझ लेते है ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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