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________________ १७६ महावीर : परिचय और वाणी एक है और अगर समझ मे आ जाय तो सुख का भ्रम टूट जाता है । सुख का भ्रम टूटे तो दुख का साक्षात होता है। सुख का भ्रम बना रहे तो दुख का साक्षात् नही होगा क्योकि इस भ्रम के कारण हम दुख को सहनीय बना लेते है, हम उसे झेल लेते है । सुख का भ्रम टूट जाय तो भागोगे कहाँ, यह कभी सोचा है ? जब सब ओर दुख के कांटे हमे छेद लेते है और भविप्य की कोई आगा नही रह जाती तव हम स्वय मे लौटते है। जिस दिन दुख का पूर्ण साक्षात्कार होता है, उसी दिन वापिसी शुरू हो जाती है, व्यक्ति लौटने लगता है। दुख से भागोगे तो सुख मे पहुँच जाओगे, दुख मे जागोगे तो आनन्द मे पहुँच जाओगे। दुख से भागे नही, खडे हो गए, दुख को पूरा देखा और उसका साक्षात् किया तो रूपान्तरण शुरू हुआ। दुख का साक्षात् आनन्द की यात्रा बन जाता है। __आम तौर से हम सोचते है कि हम इसलिए दुखी है कि हमारी इच्छाएँ पूरी नही होती, जब कि सच्चाई यह है कि हम जो इच्छा करते है वह दुख का बीज है । जब हमारी इच्छा विना पूरा हुए इतना दुख दे जाती है तो अगर वह पूरी हो जाय तो कितना दुख दे जायगी, वहत मश्किल है कहना। पाने का, जीतने का, सफल होने का भी जो सुख है वह सब चला जाता है। प्रेयमी दूर से जैसी लगती है, वैसी पास से नही । दूर के ढोल सुहावने होते है। असल मे दूरी एक सुहावनापन पैदा करती ही है। जिसे हम नहीं देख पाते, उसकी जगह हम अपना सपना ही रख देते है । हम धनी होना चाहते है और इसके लिए प्रतियोगिता करते है, हममे प्रतिस्पर्धा का भाव होता है। जिस दिन सारी पृथ्वी का धन मिल जाता है, उस दिन प्रतियोगिता समाप्त हो जाती है, धन ही दुख का कारण बन जाता है। स्मरण रहे कि सुख प्रतियोगिता में था न कि धन मे। अगर सारी पृथ्वी का धन एक व्यक्ति को मिल, जाय तो वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा। अंगर सारी पृथ्वी के लोगो की इच्छाएं पूरी कर दी जाये तो उसी वक्त पृथ्वी समाप्त हो जाय । इच्छाओ की पूर्ति सुख नही लाती बतिक दुख का कारण बनती है। यदि उनकी अपूर्ति इतना दुख लाती है तो उनकी पूर्ति कितना दुख लायगी | आखिर यह दिखाई पड़ जाय तो तुम सुख की आशा को छोड दोगे । सुख की आशा एक दुराशा है, असम्भावना है । जिस व्यक्ति की आशा छूट जाती है, वह दुख के साथ सीधा खडा हो जाता है। इस साक्षात्कार मे जो रहस्यपूर्ण घटना घटती है वह यह है कि दुख तिरोहित हो जाता है। मैं अपने मे लौट आता हूँ, क्योकि सुख पाने की चेष्टा छोड देता हूँ। anded इतिहास की दृष्टि मे महावीर अतीत की घटना भले ही हो, साधक के लिए वे भविष्य की घटना है। आनेवाले किसी भी क्षण मे साधक वहाँ पहुँच सकता है जहा
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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