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________________ ! महावीर परिचय और वाणी १७३ अगर मैं कुछ कहूंगा तो वह क्ल पुराना पड जायगा । सत्य न नया होता है और न पुराना पडता है। सारी किनाबा म भी लिसा हो तब भी सत्य पुराना न होगा । पता होने मे या आपके व्यक्ति को उसकी उपलब्धि होगी तब वह नए की ही उपलब्धि होगी । सत्य सदा से है लेकिन जब व्यक्ति सत्य से सम्बंधित होता है तब सत्य उसके लिए या हो जाता है । और प्रत्यव व्यक्ति की अनुभूति जिसे वह अभियक्त करता है, नई होती है क्योकि वैसी अभियक्ति काई दूसरा नही दे सकता । इसका कारण यह है कि वसा कोई दूसरा यक्ति न तो हुजा है, न है ओर न हो सकता है। मेरे म में कितना बडा जगत सम्बंधित है, इसका हमे कोई सयाल नही है । मेरे पदा होने म आज तक विश्व की जो भी स्थिति थी, वह सब की सन जिम्मदार है और मुझे फिर से पंदा करना हो तो विश्व की ठीक वही थिति पूरी-पूरी पुनरुक्त हो, तभी म पैदा हो सकता हूँ। मेरे पिता चाहिए, मेरी मा चाहिए। वे भी उही पिताओं और माताजा से पदा होने चाहिए जिनसे वे पैदा हुए थे । इस तरह हम पीछे राटते चले जाएँ तो देखेंगे कि विश्व को पूरी स्थिति एक छोटस व्यक्ति के पदा होत म सयुक्त है । अगर इसमें एक इच भी इधर उधर हो जाय तो मैं पदा नहा हो सकूगा । जो भी पदा होगा वह दूसरा होगा । जगत का पूरा का पूरा अतीत फिर स पुनरुक्त हो तभी म पैदा हो सकता हूँ । यह कसे सम्भव है ? तो निश्चय ही किसी व्यक्ति को दुबारा पैदा नही किया जा सकता। इसलिए किसी यक्ति के अनुभव को, उसकी अभिव्यक्ति को नी दुवारा पैदा नही किया जा सक्ता । इस अर्थ में सत्य का अनुभव व्यक्तिगत है । २ मैं मत मतान्तर का तनिक भी पपाती नही हूँ । न कोई जैन है, न वौद्ध, न कोई हिंदू है और न मुसलमान । ससार मे लोग चाहे धार्मिक हैं चाहे धार्मिक जो धार्मिक है यह बुद्ध, महावीर, कृष्ण और क्राइस्ट हो सकता है। लेकिन वह हिदू, जन, मुसलमान या ईसाई नही हो मक्ता । अवासिक आदमिया के सम्प्रदाय है । इसे ऐसा भी वह सात हैं कि धम या कोई सम्प्रदाय नहीं है, सब सम्प्रदाय अधम के हैं। अधार्मिक आदमी महावीर होने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, बुद्ध नहीं हो सकना, दृष्ण हा हो सकता । चूंकि वह धार्मिक होने का मजा लेना चाहता है इसलिए वह एक सम्ता रास्ता निकाल लेता है । वह वहता है कि महावीर तो हम हो नही सक्त लेकिन जन तो हो सकत हैं । लकिन उस पना नहा कि जिन हुए बिना कोई जा करा हा सकता है ? जिसने जीता वहा सत्य का उस जैन कसे कहा जा है ? महावीर इसलिए जिन हैं कि उन्होंने सत्य को जीता है। कि वह महावीर को मानता है ।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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