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________________ १७२ महावीर : परिचय और पाणी उठाना नहीं चाहते । महावीर वक्त पुरानी परम्परा नती थी, पुराने गुर थे, पर वे मृत थे। उनमें कोई जीवन न था। उनदिए महावीर के मावि वि पर कोई असगति की बात नही काही जा नपाती। महावीर को मौलिकता के गम्बन्ध :नना ही कल्ना पर्याप्त होगा कि सत्य न तो नया है और न पुराना। जो नदा है वह न तो बानी पुगना होगा और न कभी नया। जो नया होता है, वही काल पुराना हो जाता है। जो आज पुराना दाखता है। वहीं कल नया था। असल में सत्य के सम्बन्ध में ये विगेपण एकदम व्यय है। " वह होता है जो जनमता है, पुराना यह होता है जो बटा होता है । मन न ता जनमता है और न बूटा होता है, न मरता है। बादल नए-पुराने हो मात है, लेकिन आकाग न नया है न पुराना । सत्य भी नया और पुस है । इसलिए जब भी कोई दावा करता है कि सत्य प्राचीन है या नना, तब भी वह मूसंतापूर्ण दावा करता है। सत्य एक निरन्तरता है। गा है। महावीर और बुद्ध जो कहते है वह शायद वही है जो निरन्तर है। लेकिन उससे हमारा सम्बन्ध निरन्तर छट-छट जाता है । इमलिए १ . चिल्लाकर, पुकार-पुकार कर उस ओर हमारी आँखे उठवाते है । अति उठ मा नहा पाती कि वे फिर वापस लौट आती है। इन अर्थ मे जब भी काइया उपलब्ध होता है तो, कहना चाहिए, नया ही उपलब्ध होता है। दूसरे का साथ वासी हो जाता है और हमारे लिए कभी किसी काम का नही हाता । " भी सत्य को नया कहा जा सकता है। वस्तत हमारे लिए सत्य तमा " होगा जब वह फिर नया होगा। सवाल यह नही है कि महावार न दिया ? सवाल यह है कि उनका जीना बिलकुल नया था या नहा : २४ नहीं कि महावीर का जीना सामान्य जन के जीने से बिलकुल भिन्न था, विलकुल नया-नया इस अर्थ मे नही कि वैसा पहले कभी कोई नही जिया होगा। कोई भाजपा हो, करोड़ो लोग जिए हो, तो भी फर्क नही पडता। जव मै किमी को प्रेम करता तव वह प्रेम नया ही होता है। मझसे पहले करोडो लोगो ने प्रेम किया है, लोकन कोई भी प्रेमी यह मानने को राजी नही होगा कि मैं जो प्रेम कर रहा हूँ वह वाला या पुराना है। दूसरे का प्रेम किसी दूसरे के काम का नही होता । तो महापा विलकुल अपने ही सत्य को उपलब्ध होते है। वह बहतो को उपलब्ध हुआ हो" और होता रहेगा, फिर, भी उस उपलब्धि पर किसी व्यक्ति की कोई सालन नही लगेगी। महावीर ने अहिंसा को जो अभिव्यक्ति का जो अभिव्यक्ति दी है वह एक दम अनूठी और नई है। शायद वैसी किसी ने भी पहले नही दी थी। हल नही दी थी। अभिव्यक्ति नई हो सकती है क्योकि वह पुरानी भी पड जाती है । अव महावीर की अभिव्यक्ति पुरानी पड गई है । मशक आज
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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