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________________ महावीर परिचय और वाणी १५७ सिफ इसलिए उठा हा कि जितनी देर मे में महँगा उतनी दर तो महावीर बचे रहें। वह इतनी विनम्रता से उठा हो कि महावीर को कुछ कहना ही पड़ता है, उसे रोक्ना ही पड़ता है। महावीर के चित्त म क्या हुआ, यह समयना कठिन है, क्याकि हम ऊपर स तथ्य तो दखत है परतु हम यह खयाल म नहीं आता वि' मीतर पया कारण हो रहा था। हो सकता है कि उन दाना के प्रति भी करणा रही हा, क्योकि महावीर की परणा कोई गतबद चीज नहीं है । ऐसा न था कि वह उन लोगार प्रति ही प्रकट होती थी जो महावीर के अनुयायी थे। सम्मवत महावीर को यह पता है कि उहें रोकने से काई लाम नहीं, क्याकि कुछ रोग हैं जो रोकने से और बढ़ते हैं । व न रोके जाय ता शायद एक जायें। अहकारी व्यक्ति को रोको ता यह और तेज होता है । शायद महावीर इसलिए ही चुप रहत हैं। __आदमी के मा को समझना बडा कठिन है। यह समयना मुश्किल है कि आदमी का चित्त किस मांति काम करता है। महावीर विसी को क्या रोक्त है और विसी पो नही, यह ऊपर से जाना नहीं जा सकता। इस घटना को भीतर से देखना चाहिए। उनकी करुणा समान है लेकिन व्यक्ति मिन मिन है । वे जानते हैं कि रोमा विसके लिए साथ होगा और किसके लिए नहीं, रोक्न से कौन रुकेगा और कौन नही। इसलिए हो सकता है, वे दा व्यक्तिया को ही नही, दो सौ व्यक्तियो को भी न रोक्ते । और भी बहुत सी बातें हैं जिहें महावीर जानत है पर जो साधारणत देखी नही जा सकती। महावीर यह देस सक्त हैं कि इस व्यक्ति यी उम्र समाप्त हो गई है। यह सिफ निमित्त है इसके मरने वा इसलिए वे चुप रह सकते हैं। हो सकता है कि उस व्यक्ति की उम्र समाप्त न हई हा जिसे उहान रोका है। महावीर जसे यक्तिया को समझना बहुत कठिन है। इसलिए उनके सवध मनोई निप्प निकालना महंगा हागा । जहाँ हम सटे हैं वहां से हम जो दीस पडता है हम उस तर ही साच मक्ते हैं । जिन्हें दूर तक दिसाइ पडता है वे क्या सोचत है, परा सोचत हैं, वे साचत भी हैं या नहीं--यह सब जानना हमारे लिए मुखित है। ज्यादा से ज्यादा हम अपना ही स्प प्रोजेक्ट पर सकते है। हम यही साच सक्त है कि उन हालत म हम होन, ता क्या करते। दा आदमिया का न मरने दत या फिर तीनो को ही मरन त । हम उम चेतना स्थिति का पाई अनुभव नहीं है जो बहुत दूर तक देगती ह। कभी गोशाक के साथ महापौर विसी गाव मे गुजर रहे थे। गोशालक न कहा--जो होनेवाला है वही होता है। महावीर कहत हैं--ऐसा ही है जो हान वारा है वही होता है । जिग यत से वे गुजर ररे थे उसम दो टहनियावाला एक पौवा गा था। उसम मभी लिया लगी थी एमी परियां जो माल पर बनी। गोगाला न उस पौधे यो उखाडकर फेर दिया और कहा कि य परियां पूर बनो
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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