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________________ १४८ महावीर : परिचय और वाणी कहते है कि मै अकेला भीतर गया। यदि तुम सहारा पकड रहे हो तो भीतर नही जा सकोगे । वेसहारे हो जाओ। यह मुझे हक है कि म किनी को इतनी बात कह दूं कि विधि से कभी कोई नही पहुँचा है, इसलिए तुम विधि मत पकडना और मेरी चात भी मत पकड़ना। इसकी भी तुम खोज-बीन करना, क्योकि इसको भी अगर तुमने पकडा तो यह तुम्हारी विधि हो जायगी। यूनान के सोफिस्टो का कहना था कि कोई चीज सिद्ध ही नही है। जिन्दगी इतनी जटिल है कि उसमे सब पहल मौजूद है और तर्क देनेवाला सिर्फ उस पहलू को जोर से ऊपर उठा लेता है जो पहलू वह सिद्ध करना चाहता है और शेप पहलुओं को पीछे हटा देता है। ___ यह बात सच है कि किसी का सहारा कभी मत लेना, क्योकि सहारा भटकाने चाला होगा। परन्तु यह कहकर भी तो मैं आपको सहारा ही दे रहा हूँ न ? अव आप क्या करेगे ? सोफिस्टो ने एक उदाहरण दिया है और कहा है कि सिसली से एक आदमी एथेन्स पहँचा । यहाँ आकर उसने कहा कि मिसली मे सब लोग झूठ बोलनेवाले है। एक व्यक्ति ने उससे पूछा कि तुम कहाँ के रहने वाले हो ? उसने उत्तर दिया-मै सिसली का रहने वाला हूँ। यह सुनकर लोग मुश्किल में पड़ गए। अब वे क्या करे ? यदि उस व्यक्ति की बात मान ले तो सभी सिसली वासी झूठे ठहरते है और चूंकि वह भी सिसली का रहने वाला था, इसलिए वह भी झूठा ठहरता है। और चूंकि वह भी झूठा है, इसलिए उसकी बात सच नही मानी जा सकती। यदि उसकी वात सच मान ली जाय तो वह झूठा साबित हो जाता है और चूंकि वह झूठा है, इसलिए उसकी बात सच्ची नही हो सकती। यदि यह मान लिया जाय कि सिसली मे कम-से-कम एक व्यक्ति सच्चा है तो यह बात गलत होगी कि वहाँ सव झूठ बोलने वाले लोग हैं। जिन्दगी इतनी जटिल है कि दोनो वाते सही हो सकती है। सिसली मे सब झूठ बोलने वाले लोग भी हो सकते हैं और इस आदमी का वक्तव्य भी सही हो सकता है, क्योकि सब लोग सव समय झूठ नही वोलते । महावीर कहते है कि जीवन के एक पहलू को पकडकर कोई दावा करे तो यह है एकान्त । एकान्तवादी वह है जिसने जीवन का एक ही कोना देखा है। अगर वह सब कोने देख लेगा तो अपना आग्रह छोड़ देगा। वस्तुत महावीर बड़े अद्भुत व्यक्ति है। वे कहते है कि सत्य का आग्रह भी गलत है, क्योकि वह भी एकान्त है। सत्य के अनेक पहलू है और सत्य इतनी वडी वात है कि ठीक एक सत्य से विपरीत सत्य भी सही हो सकता है। इसलिए महावीर कहते है कि मै अनेकान्तवादी हूँ-यानी, सव एकान्तो को स्वीकार करता हूँ। अनुभव के अनन्त कोण है और प्रत्येक कोण पर खडा हुआ आदमी सही है । वस, भूल वहां हो जाती है जहाँ वह अपने कोण को सर्वग्राही बनाना चाहता है और कहता है कि मैंने जो जाना, वही ठीक है।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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