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________________ महावार परिचय और वाणी १४७ पदा होता है वह इतना अदभुत होता है कि उसके आस पाम काव्य बन जाता है कथाएँ बन जाती हैं। क्याए सच हा, ऐसी बात नही । जब काय को जार स पकड लिया जाता है और उसे जीवन का सत्य बना लिया जाता है तव कविता मर जाती है । इतना अनूठा है महावीर वा जीवन मि उमे शायद तथ्यो म कहा ही नहीं जा सकता। इसलिए उसके साथ हम काय जोडना ही पड़ता है। और जब हम वाव्य जोड़ते हैं तभी कठिनाई शुरू हो जाती है। जड रोग का य को जीवन का तथ्य मानने लगते हैं । यह जरूरी नहीं कि कोई चीज तथ्य न हो तो सत्य भी न हो। यदि तथ्य ही काव्य हो तो काव्य खत्म हो जाय, फिर काव्य का कोई सत्य ही न रह जाय । यदि पाई प्रेमी यह कि मेरी प्रयसी का चेहरा चाद है तो इसे काव्य समझिए। विनान तो कहता है कि चाद पर बडे साई-सडडे हैं फिर किसी का चेहरा चांद सा क्से हो सकता है ? असल म प्रेमी कुछ और ही कह रहा है। वह कह रहा है कि चाद को देखकर जसे मन म छाया छू जाती है चादी की धार छूट जाती है, वैसे ही किसी के चेहर से प्रेम सुधा बरसती है चित्त रस सिक्त हो उठता है। इस कविता को जगर कभी गणित और विनान की क्मोटी पर क्सने रगें तो आप गलती मे पड जायगे । इसलिए मैं इन सारी बाता का काव्य और रूपक कहता। हूँ, बोध-कथा मानता हूँ। इनके माध्यम से कुछ बातें कही गई हैं जा कि शायद क्सिी अ य माध्यम से कही नही जा सकती थी। कहानियां सत्य को कहने का एक ढग हैं। जिसस सत्य रूपमा भी न रहे और मृत भी न हो । नासमझ आदमी ही कहानिया को) सत्य बना लेता है और सत्य बना कर सारे यक्तित्व का झूठा कर देता है। महावीर ने दूसरा का सहारा नही लिया यह सही है । लेकिन साथ ही प्रश्न उठना है कि यदि सहारा न लेना महत्त्वपूर्ण है तो क्या सहारा न देना भी उतना ही महत्त्वपूण नही ? यदि है तो महावीर की अभियक्ति उनके श्रावक और श्रमण दूसरा को सहारा क्यो देते रहे 'जव में सहारा नहीं लेता तब सहारा देनवाला भी कौन होता हूँ? यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। साधारणत एसा ही दिखाई पड़ता है कि अगर काई यषित सहारा नहीं लेता तो वह भी क्मिो का सहारा न द । यह तक एक्टम भ्रात है। जब हम कहत हैं कि सहारा नहीं रना है तर इमका पु? मतलव इतना है कि भीतर जाने में हम किसी के साथ की जरूरत नही-मीतर हम अकेले ही जाना होगा। इसलिए मैं सभी सहारो का इनकार करता हूँ। लपिन अगर यह बात मैं किसी का कहने जाऊं नि सहारा रोगे तो मटन जाओगे ता एक अथ में मैं उसको सहारा दे रहा हूँ और मरे अय म उसे सहारे म वचा रहा हूँ। इसम दोना बातें हैं । महावीर जो सहारा दे रहे है वह इसी तरह का सहारा है। व लोगा को
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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