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________________ महावीर परिचय और वाणी एकत्र हुए जहा कृष्णमूर्ति म मंत्रय की आत्मा के प्रविष्ट होने की घटना घटनवाली थी। लेकिन शायद भूल चक हा गई और वह घटना न घटी। कृष्णमति न गुरु होन म इनार कर दिया, क्यानि व अत्यन्त ईमानदार आदमी हैं। ऐसा अनुभव क्यिा गया है कि मैत्रय के उतरने म बडी वाधा है। काई शरीर इस योग्य नहा मिल रहा है कि मैनेय उतर जाय और काई गम ऐसा निर्मित नहीं हो रहा है कि मैत्रेय के लिए वह अवसर बन जाय । हो सकता है कि दो चार हजार वर्षों तक लगातार प्रतीक्षा परनी पडें । हो सकता है कि प्रतीक्षा समाप्त हो जाय और बस चेतना विदा हो जाय । कृष्णमूर्ति के लिए किया गया प्रयोग असफर हो गया और अब ऐसा कोई प्रयोग पृथ्वी पर नहीं दिया जा रहा है । उपलब्धि के बाद अभिव्यक्ति का मौका अत्यन्त जररी है, इसलिए मने वहा कि महावीर की उपलपि पिछले जन्म की उपलब्धि है। इस जीवन म उहोंने उसे चाटा है, इसलिए अब उनकी चेतना के लौटने का सवाल नही है। फिर हम यह अजीब सा लगता है कि यद्यपि वुद्ध का मर पच्चीस सौ वप बीत चुके फिर मी उनका अवतरण न हुआ। जीजस भी नहीं आए। समय की हमारी जो धारणा है उसकी वजह से हमको ऐसी वठिनाइ होती है । सपना म सैक्डा वप वीत जाते हैं, परतु जव नीद टूटती है तब आप पाते हैं कि घडी म अभी मुश्किल से एक मिनट हुमा है । जागने के समय की धारणा अलग है, सोने के समय की गति अरग है। मुक्त व्यक्ति के लिए समय की गति का कोई अथ नहा रह जाता-वहाँ समय की गनि है ही नही, येवल हमारे तल पर समय की गति है। वेद्र पर परिधि से खीची गई सभी रेखाएं मिल जाती हैं और जसे-जैसे पास आती जाती हैं बसे वसे मिलती जाती है। जितना हम जीवन के द स दूर है, उतना ही समय वडा है और जितना हम जीवन केन्द्र के परीव आते हैं, उतना ही समय छोटा होता जाता है। इसलिए शायद आपन कमी सयाल नहीं किया होगा कि दुस मे समय बहुत सम्मा होता है और सुर म बहुत छाटा । सुप भीतर के कुछ निकट है दुस कुछ दूर । जाग्रतावस्था म हम समय की परिधि पर पड़े हाते हैं, सोन म हम अपन भीतर मा जाते हैं। स्वप्न भीतर पी आर है जाग्रति बाहर की ओर। स्वप्न में हम अपने में द्र के ज्यादा निपट होते हैं जागन म ज्यादा दूर। व्यक्ति के पद पर पहुँची की दशा का ही नाम समाधि है । समाधि मे समय एकदम मिट जाता है-समय होता हा नहीं। सव पप परिवि पर है पेद्र पर नहीं। वहाँ परिधि से सीच गई सभी रेषाएँ सयुक्त हो जाती हैं । दूसरी बात मापने पूछी है वि जन प्रति म समी चीजें चीय गति से चलती हैं तर मुक्तात्माएं इस शियम पा अपवाद योहा सरती हैं ? वे भी निगाद से मोक्ष तर नाती हामी और माता से लौटकर निगो मजा मरती होगी। जहाँ रामी पुछ
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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