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________________ महावीर परिचय और वाणी १२७ 1 अनुभवा से 'गुजर चुना है जिनसे बच्चे को गुजरना पडेगा । बच्चे की सरलता अनान का है। वह अभा निर्दोष दीखना है, लेकिन उसका निर्दोषता जाती रहगी । यह जटिल होता चला जायगा । किन्तु सत की सरलता लौट आई है वह फिर निर्दोष हो गया है । जब इस निर्दोषता के खो जाने का सवा नही है । ? ? जन एक अन्य प्रश्न पर विचार करें। पूछा जाता है कि क्या महावीर की अहिंसा पूर्ण विकसित है ? क्या महावीर के बाद अहिंसा का उत्तरोत्तर विकास नहीं हुआ पहली बात यह है कि कुछ ऐसी चीज हैं जो कभी विकसित नही होता - विकसित हो ही नही सकती । बुद्ध को नान उपलब्ध हुए पच्चीस सौ साल हो गए। यह पूजना यथ है कि अब जिन्हें नान उपलब्ध हुआ है वह बुद्ध के नान स विकमित है या नहीं ध्यान नान के विवमित होने का प्रश्न हा नहा उठता । ध्यान है स्वयं में उतर नाना । स्वय म चाह लास साल पहले उतरा हा जोर चाहे अब उत्तर - एक नहा परता । स्वयम उतरने का अनुभव एव है स्वयं में उतरन की स्थिति एक है । महावीर की बहिंसा उनको स्वानुभूति का ही बाह्य परिणाम है। भीतर उन्हाने जाना जीवन की एकता को और बाहर उनके व्यवहार में जीवन का एकता अहिंसा के रूप म प्रतिफलित हुए | अहिंसा का मतलब है जीवन की एकता का सिद्धात । इस बात का सिद्धान्त जो जीवन भरे मीतर है, वही तुम्हारे भीतर है । तो मैं अपन वा हा चोट क्स पहुचा सकता हूँ? मैं ही हूँ तुम्म भी फैला हुआ। जिसे यह अनुभव हुआ fa में ही सवम फैला हुआ हैं, या सब मुखरा ही जुड़े हुए जीवन हैं- उसके व्यवहार म अहिमा फलित होती है | अहिंसा कम और ज्यादा नही हुआ करती । वह वत्तव समान होती है या प्रेम के समान । जो वृत्त कम है वह वक्त ही नहीं है। प्रेम या तो होता है या नही होता--उसके टूवडे नहा होत, प्रेम विकसित तभी हो सकता है वह थोडा थोडा हो । अक्सर हमारी पसन्द विमित होता है इसलिए हम सोचत हैं कि प्रेमविवसित हो रहा है। पमाद और प्रेम में बहुत एक है । पसद कम और ज्यादा हो सकती है लेकिन प्रेम न कम होता है न ज्यादा। चाद तो वह होता ह या ही होता । दुनिया में जहिंसा, प्रेमजसी जी जन उपलब्ध होता है तो पूर्ण ही, अ यथा frage उपल ध नहीं होता । अनार की डिग्रियाँ होती हैं, पान की नहीं पाई यम जपानी हो सकता ह और कोई यादा अपनी। लेकिन एव जादमी कम पानी हो जार दूसरा ज्यादा पानी- यह बिलकुल ही बसगत, निरयय बात है। दो नियमनका फ्र नही होता, सिर्फ सूचना का का होता है। चूंकि हम बनानी हैं इसलिए छोटे-बड भाषा म जीते हैं और पानिया ने भी छाटे बड़े होने वा हिसाब लगाते रहत है। इस लिए ही तो पूछन हैं कि वीर बड़े कि नानक बुद्ध बडे र महावीर, राम वडे विष्ण, ब्राइस्ट जेक मुहम्मद ? पानिया में बाई छोटा-बडा ही हाता । एक
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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