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________________ ११८ महावीर : परिचय और वाणी जो सुख मे न बदल सके। किसी मां को ही लीजिए। वह बच्चे को गर्म मे होती है, नी महीने पेट मे रखती है, दुख उठाती है, प्रसव की पीड़ा सहती है। बच्चे का जन्म होता है, वह उसका लालन-पालन करती है, बच्चे का वांझ मुस की तरह स्वीकारती है। बच्चे को बड़ा करना लम्बे दग की प्रनिया है। लेकिन मां का मन उसे सुस बना लेता है। अगर आगा, सम्भावना, आकाक्षा, कामना तीव्र हो तो दुप सुख बन जाता है। सुख और दुस मे कोई मौलिक भेद नहीं है, हमारी दृष्टि का भेद है । आगा हो तो दुस को सुस बनाया जा सकता है। नागा क्षीण हो जाय तो सुख दुरा मे परिणत हो जाता है । महावीर कहते है कि न तो तुम किसी को नुस पहुंचाओ मीर न दुख । जिस दिन कोई व्यक्ति उस स्थिति में पहुँच जाता है जिनमे वह न किसी को सुस पहुँचाना चाहता है, न दुस, उस दिन वह सबको आनन्द पहुँचाने का कारण बन जाता है । इसे समझ लेना जरूरी है। आनन्द पहुँचाने का कारण ही तभी कोई व्यक्ति बनता है जब वह सुख और दुस के चक्कर से मुक्त हो जाता है और उम दृष्टि को उपलब्ध होता है जिसमे मुख-दुस का कोई मूल्य नही । सुस-दुख पहुंचाने वाले को हम अच्छा बुरा तो कहते है, लेकिन चूंकि हमे मानन्द को पहचानने नही माता इसलिए मानन्द देने वाला व्यक्ति हमसे दिलकुल अपरिचित रह जाता है। आनन्द चेतना से सहज ही विकीर्ण होने लगता है जो मुस-दुस के द्वन्द्व के पार चली जाती है। निश्चित ही जिनके पास आँखे होती है वे उस आनन्द को देख पाते है । ___ महावीर की गहरी समझ यह है कि कभी-कभी किसी को सुख पहुँचाने से भी उसको दुख पहुँच जाता है--अर्थात् कभी भी आक्रामक रूप से विसी को सुर पहुँचाने की चेष्टा भी उसको दुख पहुँचा सकती है। यह जरुरी नही कि आप सुख पहुँवाना चाहते हो तो इससे दूसरे को सुख पहुँच जाय । सच तो यह है कि अगर कोई किसी को सुख पहुँचाने की कोशिश करे तो उसको दुख पहुँचाता ही है । अगर वाप अपने बेटे को सुख पहुंचाने की कोशिश मे लग जायें, उसके सुधार की व्यवस्था करने लगे और सोचे कि इससे उसे सुख पहुँचेगा तो सम्भावना इस बात की है वेटा को दुख पहुँचेगा और बेटा अपने पिता के ठीक विपरीत जायगा। इसलिए अच्छे वाप अच्छे बेटो को पैदा नहीं कर पाते । अच्छे बाप के घर अच्छा बेटा पैदा होना अपवाद है। अच्छा बाप बेटे को अनिवार्यत विगाडने का कारण बनता है । सुख इतनी सूक्ष्म चित्त-दशा है कि कोई पहुँचाना चाहे तो नही पहुँचा सकता । मैं लेना चाहूँ तभी ले सकता हूँ। इसलिए महावीर ने सुख पहुँचाने पर जोर ही नही दिया, वात ही छोड दी, और कहा कि अगर कोई तुमसे सुख लेना चाहे तो दे देना, वह भी सिर्फ इसलिए कि अगर तुम न दोगे तो उसे दुख होगा। लेकिन तुम सुख पहुँचाने मत चले जाना।
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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