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________________ महावीर परिचय और वाणी ११७ हमारे सब सवाल उल्टे होते हैं क्याकि हमारे प्रश्न वहा से उठते है हा ची दिर कुल उटी हैं। महावीर के प्रेम म कोई शन नहीं है। शायद उतना बेत प्रेम पना हुना ही नही । उनको सभी गत अपने जस्तित्व के लिए हैं तुम्हारे प्रेम के रिए नहीं। यह इसलिए वि कहा ऐसा न हो जाय कि तुम्हारा प्रेम विदा हो चुका हा और अस्तित्व का मेरी जररत न हो और में जिए चला जाऊँ । तब यमानी हो नायगी बात। महावीर पिसी परमात्मा का मानत नहीं जा कि सबर कर दे और यह दे, बस ौट जाओ। इसलिए जस्तित्व से ही यह राबर लेनी है। उस ही बनाना है कि उसे मेरी जरूरत है या नहीं। इसलिए गत लगा लेता हूँ ताकि मुये पता चलता जाय कि अब आगे जीना है या लोट जाना ही श्रयस्पर है। ___ जगत को इस बात की जरूरत है कि महावीर दुवारा आए । जव कोई प्रक्नि आनद को उपलक्ष्य हा जाता है तो सारे जगत के प्राणिया की पुकार घूम घूमकर उमर पाम पहुँचन लगती है कि जगत पप्ट म है, दुखी हैं इसलिए अपना आनद याग। यह वारना ही लौटाता है । लागो की पुकार ही उस पुन बुला लेती है। पिन यह दिखाई नही पडता । लाग पूछते हैं कि आप क्सिलिए बोलते है ? यह ध्यान म आना वदिन है कि कोई सुनने को आतुर हो गया है इसलिए मैं बोलता हूँ। वोई सुनन वाला पुवारेगा, तभी मैं बालूगा । ससार म घटनाएँ उरटी घटती हैं। मैं वोलूगा तब मुनन वाला आयगा, लेकिन अन्तजगत में घटनाएँ ऐस नहीं घनना । अतस्तल म सुनने वाला पहल मौजूद होता है तब बोलने वाला आता है । यदि महावीर तुम्हार गांव म आ जाये तो तुम बहोग कि क्या आए हैं आप यहा? मो की बात तो यह है कि तुम्ही ने बुराया था उहें। महावीर का यह पीडा भी घेरनी पडेगी वि तुम्ही ने चुराया था उहें और तुम्ही पूछागे कि कैसे आप आए ह यहाँ ? _यह सच है कि महावीर ने किसी की शारीरिक सहायता नहा की। इसके कारण को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। परम अहिंसा की स्थिति म व्यक्ति किसी को दुपही पहचाना नहीं चाहता, सुष भी पहुंचाया नहा चाहता। बहुत गहरे म मुस और दुप एक ही ची। दो स्प हैं। तिस हम सुप बहते है उमवी मात्रा अगर थोरी वढा दी जाय तो यह एव म बदर जाता है। भाजन करना सुरद होता है, दिन आप ज्यादा भोजन करता सुख दुग म बल है। आप प्रेम से आरि मिरे ता मैंने मापवो गले से लगा लिया । बडा सुपद है क्षण दा क्षण वा ऐमा मिल्न । रपिन Tब मैं आपको पा रमूंगा और माप छूटन के लिए तडपा लगगे तर आपकी क्या दगा होगी? आप मुषी हो सरेंगे ? आधा घटा हुआ कि माप पाहेंगे, चित्लाएगे दि कोई पुलिसवाला आए और आपयो बचाए । सुख व दुग म बदल जाता है, यह कहना मुश्किल है। सब मुग दुग में बदर सपना है और ऐमा पोई दुहीं
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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