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________________ महायोर परिचय और वाणी पिछले जनक किसी पाप का फल माग रहा हूँ तो मैं हाय डाल चला जाऊँगा, क्यारि पिछरे ज म यम को में बदल कसे मरताहूँ? जिन गुरुआ पी यह मा यता है जि पिरले जग पे किसी कम के कारण मरा हाय र रहा है वे यह नही कहेंगे रि हाथ बाहर सोचो तो जलना बद हो जाय । इसका मतलर यह हुमामि हाय अभी डाला जा रहा है और अभी डाला गया हाय बाहर भी सोचा जा सकता है सकिन पिछले जम म डाग गया हाथ आज से वाहर साचा जा सकता है ? हमारी इस व्यास्था वि अनन्त जमा तव नम के पल चरते हैं, मनुष्य को एक्दम परतय कर दिया है। किन्तु मेरा मानना है कि मय कुछ किया जा सकता है इसी पस्त, पोंथि जो हम कर रहे है वही हम भोग रहे हैं। दिगा यी विषमता को समपने के लिए ऊटपटांग व्यवस्थाएँ गर ली जाती हैं। मेरी समय म यदि कोई बुरा आदमी सफल होना है, मुसी है तो इसका भी कारण है। मैं कुर आरमी को एक बहुत बड़ी जटिल घटना मानता हूँ। हा सक्ता है, यह पूठ बोलता हो, वेइमानी करता हो, लेकिन उसम युछ और गुण हागे जो हम दिखाई नहा पडते । वह साहमी हो रापता है, बुद्धिमान हो सकता है, एक-एर पदम को समपकर उठानेवाला हा सकता है। उसरे एक पहल को देखकर हो कि वह बंदमान है आपन निणय करना चाहा तो आप गलती कर लगे। हो सकता है कि अच्छा भादमी चोरी न परता हो, वेइमानी भी न करता हो, लेगिन वह कापर हो । बुद्धि मान् आदमी के लिए अच्छा हागा अपमर मुसि हो जाता है। बुद्धिमान आगमी __ अच्छा होने के लिए मजबूर हाता है। मरी मा यता है पिरापरता मिलती है साहा म। अगर बुरा मामी माहसी है तो सपता ले आयगा। सच्छा आगमी अगर गाहती है ता वह वरे आदमी की अपेणा हजार गुनी सालना ए आपगा | सपना मिती है बुद्धिमानी से । मगर चुरा आगमी बुद्धिमान है तो उसे सफलता मिली हो । बगर अच्छा आदमी अतिमान है तो उसे हमारगुती सपना मिलेगी। रिन ग मछे भर हा से नहीं आती। सफल ना माती है बुद्धिमानी म, विकार, रिवन से। कोई गादमी अच्छा है, मदिर जाता है, प्रायना करता है तीन उमा पाग पसे नहा है। अब मर जाा और प्राया परने स पगा हा या या मम्प प? जग पोई अच्छा सादमी यह है fr में मुमो परी, पारि में अच्छा है और यह दूगरा मामी गुती है पारि यह बुरा है तारठा गानयाग पर यामी पुराने का सन्तद रहा है। यह "प्या से भगना जामी है। परे जामी पा जा को मिला है यह सब पाना चाहता है और अम्मा हर पता पाता है। या पारोगा ही पड़ी है। मनिरामोदा लागाएपमा Faगा सिख जगा रेहान पा सो माया युरे हाल पो पीला होण, रे हाला दारा। जागो मरि म पूजा पसा पाता। परम
SR No.009967
Book TitleMahavir Parichay aur Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year1923
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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