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________________ ज्यों था त्यों ठहराया चाहे मरघट का मतलब हो, हर घटना मुझमें घटती है, सात सुरों की बंसुरिया में, मैं सब भावों का संगम हूं, चाहे कोई जगे योग में, कोई मुक्त रहे या बंदी, कोई हो जाए संन्यासी, चाहे कोई अलख जगाए, मुझसे दूर कहां जाएगा, मेरे इस चैतन्य जलधि का देखो, यह संगीत उठा तो, कोई बुद्ध हुआ क्या जैसे, कोई मुक्त हुआ क्या जैसे चाहे कहीं बजे शहनाई सब मेरा मानस-मंथन है कभी हंसी है कभी रुलाई मुझमें जग हंसता-गाता है समझो मैं ही युक्त हो गया कोई सुमिरे या बिसरा दे या कोई संसार बसा दे या कालिख से पुते चदरिया चाहे सुप्त रहे या जागे दिखा न कोई कूल किनारा मेरे लिए निरुक्त हो गया मुझमें कुछ संबुद्ध हो गया मुझमें ही कुछ मुक्त हो गया , उनको डूबने दो। एक सागर यहां मौजूद है। दिखाई नहीं पड़ता; अदृश्य है। और इसमें जो डूबा, वह भीगेगा; अनभीगा नहीं जा सकेगा । मगर तुम हट जाओ। संत ! तुम किनारे पर मत खड़े रहना । तुम हट ही जाओ। तुम बात ही मत उठाना। वे कहें भी, तो भी उत्सुकता मत दिखाना। अपनी उत्सुकता भीतर ही भीतर रखना। बोलना भी मत कहना भी मत। हां, तुम्हारे आनंद को उन्हें देखने दो। तुम्हारे भीतर जो रूपांतरण हुआ है, उसे पहचानने दो। बस, वही उन्हें भी ले आएगा । आ जाएं, तो शुभ है। आ जाएं, तो मंगल है, क्योंकि कल का कोई भरोसा नहीं है। आज इतना ही चौथा प्रवचन दिनांक १४ सितंबर, १९८० श्री रजनीश आश्रम, पूना जागो-डूबो पहला प्रश्न भगवान, अहमक अहमदाबाद मिल गया। वही मारवाड़ी चंदूलाल का पिता और ढब्बूजी का चाचा! लेकिन है बहुरूपी देखती हूं--अदृश्य हो जाता है। अचानक दूसरे रूप में प्रकट होता है। इसकी लीला विचित्र है। जन्मों-जन्मों से स्वामी बन कर बैठा है। अब तो मैं थकी। बूढा, कुरूप, गंदा--पीछा नहीं छोड़ता। आपके सामने होते हुए भी आपसे मिलने नहीं देता। आपके प्रेम-सागर में डूबने नहीं देता। जीवन सौंदर्य की उड़ान नहीं लेने देता। इसी के कारण मैं विरह अग्नि में जली जा रही हूं। मैं असहाय, असमर्थ हूँ। भगवान ! मेरे भगवान! मेहर करो मेहरबान Page 95 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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