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________________ ज्यों था त्यों ठहराया क्योंकि मां-बाप--तुम्हारी कितनी ही उम्र हो, तुम्हारी कितनी ही समझ हो, कितना ही ध्यान हो--उनके सामने तो तुम बच्चे हो। उनके अहंकार को बहुत चोट लग जाती है। बहुत चोट लग जाती है--कि मेरा बेटा और अपने ढंग से मुझे चलाना चाहे! कभी नहीं। बहुत अड़चन आ जाती है। यहां मेरी एक संन्यासिनी है अमरीका से--शून्यो। उसकी उम्र होगी कोई सत्तर वर्ष। उसकी मां की उम्र है नब्बे वर्ष। मां अभी जिंदा है। उसकी मां के पत्र आते हैं। वे देख कर मैं दंग हुआ। सत्तर वर्ष की लड़की! अब तो खुद भी सत्तर वर्ष की लड़की बूढी हो गई--शून्यो। शून्यो यहां आकर संन्यस्त हो गई। और फिर उसने अमरीका का खयाल ही विस्मरण कर दिया। यहां डूब गई पूरी तरह। उसकी मां उसे लिखती है कि अरी मूरख, तुझमें अकल न आई! तू बच्ची ही रही! सत्तर साल की बेटी को लिखती है कि तू बच्ची ही रही। घर वापस आ। किस उलझन में पड़ गई! किस चक्कर में उलझ गई! किसके सम्मोहन में आ गई! सत्तर वर्ष की बेटी भी नब्बे वर्ष की मां को बेटी ही मालूम पड़ती है, क्योंकि मां और बेटी के बीच जो बीस साल का फासला है, वह तो उतना का ही उतना है। जब शून्यो पांच साल की थी, तब भी फासला इतना ही था--बीस साल का। अब सत्तर साल की है, तो भी फासला तो बीस ही साल का है। इसलिए मां-बाप की नजरों में बच्चे कभी बड़े नहीं होते। मैं बीस साल तक यात्रा करता रहा। जितनी यात्रा मैंने की, इस देश में शायद ही किसी व्यक्ति ने की होगी। महीने में कम से कम चौबीस दिन या तो कार में या हवाई जहाज में या ट्रेन में चलता ही रहा--चलता ही रहा। लेकिन जब भी मैं अपने गांव जाता, मेरी नानी मुझसे एक बात हमेशा कहती। क्योंकि उनको हमेशा दो बातों की चिंता लगी रहती थी। तो वह मुझे याद दिला देती थी कि एक तो चलती गाड़ी में कभी मत चढ़ना! मैं उनको कहता कि चलती गाड़ी में मैं चढूंगा ही क्यों! वे कहती कि नहीं; चलती गाड़ी में चढ़ना ही मत। न चलती गाड़ी में उतरना। गिर-गिरा जाओ, कुछ हो जाए! और यह तुम्हें क्या सनक सवार है कि बस, घूमते ही रहते हो! अब थिर हो कर बैठो--एक जगह बैठो। और दूसरी बात कि किसी से विवाद नहीं करना! इसकी उन्हें हमेशा चिंता लगी रहती थी। वह जानती थी मुझे बचपन से--कि किसी से भी मेरा विवाद हो जाता था। घर में कोई मेहमान आए, उससे विवाद हो जाए। कोई पंडित पूजा-पत्री के लिए आए, उससे विवाद हो जाए। स्कूल में शिक्षकों से विवाद हो जाए। शिकायतों पर शिकायतें! मुहल्ले में जिससे भी आए शिकायत ही आए! तो उनको हमेशा चिंता बनी रहती कि देखो, किसी से ट्रेन में अनजान अजनबी आदमियों से कोई विवाद नहीं करना नाहक! तुम्हें क्या मतलब दुनिया से? जाने दो भाड़ में, जिसको जाना है। नाहक झंझट-झगड़ा खड़ा नहीं करना कहीं! Page 93 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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