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________________ ज्यों था त्यों ठहराया इनकी शिक्षा में ही भ्रांति है। ये जरूर तुम्हें कहा गया है, बोलने से स्वर्ग मिलता है सत्य भी अंत नहीं, साध्य जाती है। ये जो तुम्हें शिक्षा दे रहे हैं, ये जो तुम्हारे सहारे हैं, इनसे जरा सावधान! जरा सजग ! खुद पाखंडी हैं, और तुम्हें भी पाखंड में घसीट रहे हैं। सच बोलो क्यों? क्यों सच बोलो? इसलिए सच बोलो कि सच पुण्य मिलता है! सत्य भी साधन है! वह भी लाभ के लिए है। नहीं - - साधन है ! और जब सत्य साधन होता है, तो अड़चन हो वहां तक तो आदमी सत्य बोलेगा, जहां तक लाभ होने की संभावना है। और जहां हानि होने लगेगी, वहां क्या करेगा? लाभ के लिए सत्य बोलता था। अब लाभ होता नहीं। अब झूठ से लाभ हो रहा है, तब आदमी क्या करे? और यही मां-बाप, यही शिक्षक, यही गुरु, यही महात्मा हमेशा सिखा रहे हैं कि हमेशा लाभ पर दृष्टि रखो। चाहे लौकिक लाभ हो, चाहे पारलौकिक लाभ हो--लाभ में फर्क नहीं। लाभ यानी लोभ का विस्तार । : क्या तुम सोचते हो तुम सत्य बोलोगे, अगर सत्य बोलने का परिणाम नर्क में पड़ना हो? नहीं। तुम सत्य बोलते हो, क्योंकि सत्य बोलने से स्वर्ग मिलता है स्वर्ग में क्या मिलेगा? अप्सराएं मिलेंगी। उर्वशियां मिलेंगी। मेनकाएं मिलेंगी। क्या मजा है। यहां स्त्रियों से भागो, क्योंकि स्त्री नरक का द्वार है और स्त्री से भाग कर स्वर्ग में और सुंदर स्त्रियां पाओगे ! यह कैसा उलटा गणित है? यहां त्यागो इच्छाओं को और स्वर्ग में क्या होगा? कल्पवृक्ष मिलेंगे? जिनके नीचे बैठकर इच्छा करते ही पूरी हो जाती। यह क्या बेईमानी है? -- मुसलमानों का स्वर्ग, हिंदुओं का स्वर्ग, ईसाइयों का स्वर्ग - विचारणीय है- बड़ा विचारणीय है। सारे धर्मों का स्वर्ग विचारणीय है क्योंकि उससे पता चलता है कि तुम्हारे संतों, महात्माओं की असली इच्छा क्या है। स्वर्ग का पता नहीं चलता; सिर्फ तुम्हारे महात्माओं के भीतर दबी हुई वासनाओं का पता चलता है। कल्पवृक्ष हिंदुओं का। यहां तपश्चर्या कर रहे हैं। सिर के बल खड़े हैं? शरीर को गला रहे हैं। किस आशा में इस आशा में कि आज नहीं कल सभी इच्छाओं की तृप्ति हो जाएगी। अरे, जिंदगी तो चार दिन की है; गुजर ही जाएगी। भूखे भी रहना पड़ा; नंगे भी रहना पड़ा; तप भी करना पड़ा गुजर ही जाएगी। कोई बहुत लंबी नहीं है और फिर अनंत काल तक अनंत काल तक--खयाल रखना -- कल्पवृक्ष के नीचे मजा ही मजा है! जो इच्छा करोगे, तत्क्षण पूरी हो जाएगी ! मुसलमानों के स्वर्ग में शराब के चश्मे बह रहे हैं। यहां शराब पर पाबंदी है और वहां शराब के झरने बह रहे हैं। डुबकी लो! तैरो ! पीयो - पिलाओ। कुछ खर्च नहीं लगता। यहां स्त्रियों से तुम्हारा साधु-संन्यासी बच बच कर चलता है और वहां पाएगा क्या? कांचन - देह, स्वर्ण जैसी देह जिनकी ऐसी सुंदर अप्सराएं, जो सदा युवा रहती हैं, जो कभी बूढी नहीं होती। जिनके शरीर से पसीना नहीं निकलता। उस अभीप्सा से भरा है। Page 70 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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