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________________ ज्यों था त्यों ठहराया तस्वीरें हैं--अपनी ही तस्वीरें--लेकिन दर्पण अलग-अलग। तो अपनी ही कितनी तस्वीरें देख लीं। हर दर्पण अलग तसवीर दिखलाता है। एक तसवीर देखी पत्नी की आंखों में, पति की आंखों में। एक तसवीर देखी अपने बेटे की आंखों में, बेटी की आंखों में। एक तसवीर देखी मित्र की आंखों में, एक तसवीर देखी शत्रु की आंखों में। एक तसवीर देखी उसकी आंखों में--जो न मित्र था, न शत्रु था; जिसको परवाह ही न थी तुम्हारी। लेकिन तसवीर तो हर दर्पण में दिखाई पड़ी। ऐसे बहुत-सी अपनी ही तस्वीरें इकट्ठी हो गई। हमने अलबम सजा लिया है! दुई ही नहीं हुई--अनेकता हो गई! एक दर्पण में देखते, तो दुई होती। रज्जब ठीक कहते हैं, ज्यूं मुख एक, देखि दुई दर्पन! देखा नहीं दर्पण में कि दो हुआ नहीं। इसलिए द्वैत हो गया है। है तो अद्वैत। स्वभाव तो अद्वैत है। एक ही है। लेकिन इतने दर्पण हैं--दर्पणों पर दर्पण हैं! जगह-जगह दर्पण हैं! और तुमने इतनी तस्वीरें अपनी इकट्ठी कर ली हैं कि अपनी ही तस्वीरों के जंगल में खो गए हो। अब आज तय करना मुश्किल भी हो गया कि इसमें कौन चेहरा मेरा है! जो मां की आंख में देखा था--वह चेहरा? कि जो पत्नी की आंखों में देखा--वह चेहरा? कि जो वेश्या की आंखों में देखा--वह चेहरा? कौन-सा चेहरा मेरा है? जो मित्र की आंखों में देखा--वह? या जो शत्रु की आंखों में देखा--वह? जब धन था पास, तब जो आंखें आसपास इकट्ठी हो गई थीं, वह चेहरा सच था; कि जब दीन हो गए, दरिद्र हो गए--अब जो चेहरा दिखाई पड़ रहा है? क्योंकि अब दूसरी तरह के लोग हैं। एक बहुत बड़ा धनी बरबाद हो गया। जुए में सब हार गया। मित्रों की जमात लगी रहती थी, मित्र छंटने लगे। उसकी पत्नी ने पूछा...। पत्नी को कुछ पता नहीं। पत्नी को उसने कुछ बताया नहीं--कि हाथ से सब जा चुका है। अब सिर्फ लकीर रह गई है--सांप जा चुका है। तो पत्नी ने पूछा कि क्या बात है! बैठक तुम्हारी अब खाली-खाली दिखती है? मित्र नहीं दिखाई पड़ते। आधे ही मित्र रह गए! पति ने कहा, मैं हैरान है कि आधे भी क्यों रह गए हैं! शायद इनको अभी पता नहीं। जिनको पता चल गया, वे तो सरक गए। पत्नी ने कहा, क्या करते हो! किस बात का पता? पति ने कहा, अब तुझसे क्या छिपाना। सब हार चुका हूं। जो धन था--हाथ से निकल चुका है। सब जुए में हार चुका। जो मेरे पास इकट्ठे थे लोग, वे धन के कारण थे, यह तो आज पता चला! जिन-जिन को पता चलता जा रहा है कि अब मेरे पास कुछ भी नहीं है, वे खिसकते जा रहे हैं। ठीक है: गुड़ था, तो मक्खियां थीं! अब गुड़ ही नहीं, तो मक्खियां क्यों? फूल खिले थे, तो भंवरे आ गए थे। अब फूल ही गिर गया, मुरझा गया, तो भंवरों का क्या! पत्नी ने यह सुना और बोली कि मेरे पिता ठीक ही कहते थे कि इस आदमी से शादी मत करो। यह आज नहीं कल गढे में गिराएगा। मैं मायके चली! Page 4 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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