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________________ ज्यों था त्यों ठहराया सभ्यता अलग-अलग होगी। तिब्बत में अलग होगी...| अब तिब्बत में ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करना, सभ्यता नहीं हो सकती। कैसे होगी? मरना है? डबल निमोनिया करना है? लेकिन भारत में तो रोज ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर लेना, सभ्यता होगी, निश्चित सभ्यता होगी। भारत में जमीन पर बैठना पद्मासन में बिलकुल सभ्य होगा। लेकिन पश्चिम में जमीन पर नहीं बैठा जा सकता। इतनी ठंड है, इतनी कठिनाई है। भारत में उघाड़े भी बैठो तो सभ्यता है, लेकिन पश्चिम में उघाड़े नहीं बैठ सकते हो। लेकिन संस्कृति भिन्न-भिन्न नहीं हो सकती, क्योंकि संस्कृति न तो मौसम से जुड़ी है, न भूगोल से, न राजनीति से, न परंपरा से। संस्कृति की कोई परंपरा नहीं होती। संस्कृति को तो प्रत्येक व्यक्ति को अपने भीतर ही अन्वेषण करना होता है। संस्कृति पाने की कला ध्यान है, क्योंकि ध्यान से प्राकृत का परिष्कार होता है; क्रोध को करुणा बना दे--ऐसा चमत्कार होता है; वासना को प्रार्थना बना दे--ऐसा जादू; इसका पूरा विज्ञान कि जो-जो हमारे भीतर व्यर्थ है उसको छांट दे, ताकि सार्थक ही बच रहे; जो हमारे भीतर शुभ्रतम है, उसे उभार दे; अंधेरे को काट दे, दीए को जला दे, रोशन कर दे! अंतर्ज्योति में जगमगाता हुआ व्यक्ति जानता है कि संस्कृति क्या है। केवल बुद्धों ने जाना है कि संस्कृति क्या है। संस्कृति बुद्धुओं की दुनिया का हिस्सा नहीं है। बुद्धू तो संस्कृति को भी बिगाड़ देंगे। वे तो उसको भी भारतीय बना लेंगे, ईसाई बना लेंगे, जैन बना लेंगे, हिंदू बना लेंगे! वे तो उस पर भी राजनीति थोप देंगे। भूगोल, इतिहास--इसके नीचे दब कर संस्कृति मर जाएगी। संस्कृति तो आत्मा है व्यक्ति की। वह तो सेतु है परमात्मा से मिलने का। मैं तुम्हें यहां संस्कृति दे रहा हूं, सभ्यता नहीं। क्योंकि मेरी धारणा मेरे अनुभव से निकली है। अनुभव मेरा यह है कि सभ्य व्यक्ति जरूरी नहीं कि सुसंस्कृत हो। सभ्य व्यक्ति के तो कई चेहरे होते हैं--बैठकखाने में कुछ और, स्नानगृह में कुछ और ; सामने के दरवाजे पर कुछ और, पीछे के दरवाजे पर कुछ और। मुख में राम, बगल में छुरी! सभ्य व्यक्ति के तो बड़े द्वंद्व होते हैं। क्योंकि भीतर दबाया है उसने। सभ्यता दमन है। कोई भी सभ्यता हो, दमन है। जबर्दस्ती व्यक्ति को समाज के साथ समायोजित करने की चेष्टा है। बिना रूपांतरित किए, उसे सिखाना है शिष्टाचार कि ऐसे जीओ, यह करो यह न करो। ये सब आदेश ऊपर से थोपे जाएंगे। स्वभावतः उसका आचरण एक होगा और अंतस और। सभ्यता दमन है, लेकिन संस्कृति रूपांतरण है, दमन नहीं। संस्कृति होगी, तो सभ्यता तो होगी; लेकिन सभ्यता हो, तो संस्कृति अनिवार्य नहीं। सभ्यता धोखा हो सकती है। और यह भी भेद होगा कि जो संस्कृति को उपलब्ध है, उसकी सभ्यता उतने दूर तक ही सभ्यता होगी, जितने दूर तक उसकी अंतरात्मा के विपरीत नहीं जाती। जहां विपरीत जाएगी, वहां वह बगावत करेगा; वहां वह विद्रोही होगा। सभ्य आदमी कभी विद्रोही नहीं होता, हमेशा आज्ञाकारी होता है। इसलिए समाज को चिंता नहीं है कि तुम्हारे जीवन में संस्कृति हो; समाज को चिंता है कि बस तुम सभ्य रहो, इतना काफी है। सभ्य रहे, तो गुलाम रहे। सभ्य रहे, तो दास रहे। सभ्य रहे, तो शोषण Page 28 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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