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________________ ज्यों था त्यों ठहराया आज इतना ही। पहला प्रवचन; दिनांक ११ सितंबर, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना संस्कृति का आधार: ध्यान पहला प्रश्न : भगवान, भारतीय संस्कृति संसद अपने पच्चीस वर्ष पूरे कर रही है, उसके उपलक्ष्य में डाक्टर प्रभाकर माचवे ने आपको चिंतक, विचारक और मनीषी का संबोधन देते हए भारतीय संस्कृति ग्रंथ के लिए आपके विचार आमंत्रित किए हैं, जिसे वे ग्रंथ के प्रारंभ में प्रकाशित करके धन्यता अनुभव करेंगे। भगवान, निवेदन है कि कुछ कहें! चैतन्य कीर्ति! मैं न तो चिंतक हूं, न विचारक, न मनीषी। चिंतन को हम बहुत मूल्य देते हैं; विचारक को हम बड़ा सौभाग्य समझते हैं; मनीषा तो हमारी दृष्टि में जीवन का चरम शिखर है। लेकिन सत्य कुछ और है। न तो बुद्ध विचारक हैं--न महावीर, न कबीर। जिसने भी जाना है, वह विचारक नहीं है। जो नहीं जानता, वह विचारता है। विचार अज्ञान है। अंधा सोचता है: प्रकाश कैसा है, क्या है! आंख वाला जानता है--सोचता नहीं। इसलिए कैसा चिंतन? कैसा विचार? विचार और चिंतन अंधेरे में टटोलना है--और अंधे आदमी का। दर्शनशास्त्री की परिभाषा शॉपेनहार ने यूं की है--कि जैसे कोई अंधा आदमी अंधेरे में काली बिल्ली को खोजता हो, जो कि वहां है ही नहीं! विचारक, चिंतक, मनीषी--सब मन की प्रक्रियाएं हैं। और जहां तक मन है, वहां तक संस्कृति नहीं। मन का जहां अतिक्रमण है, वहीं संस्कृति का प्रारंभ है। मन का अतिक्रमण होता है ध्यान से। इसलिए मेरे देखे, मेरे अनुभव में, ध्यान ही एकमात्र कीमिया है, जो व्यक्ति को सुसंस्कृत करती है। मनुष्य जैसा पैदा होता है, प्राकृत, वह तो पशु जैसा ही है, उसमें और पशु में बहुत भेद नहीं। कुछ थोड़े भेद हैं भी तो गुणात्मक नहीं--परिमाणात्मक। माना कि पशु में थोड़ी कम बुद्धि है, आदमी में थोड़ी ज्यादा; मगर भेद मात्रा का है; कोई मौलिक भेद नहीं। मौलिक भेद तो ध्यान से ही फलित होता है। पशु को ध्यान का कुछ भी पता नहीं। और वे मनुष्य जो बिना ध्यान के जीते है और मर जाते हैं--नाहक ही जीते हैं, नाहक ही मर जाते हैं। अवसर यूं ही गया! अपूर्व था अवसर। जीवन सत्य के स्वर्ण-शिखर छू सकता था; खिल सकते थे कमल आनंद के; अमृत की वर्षा हो सकती थी, लेकिन ध्यान के बिना कुछ भी संभव नहीं। Page 26 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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