SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया किसी और की डोर पकड़ना। अब तुझसे क्या छिपाना! और हम वैसे ही कूदेंगे, तू सुई मत चुभाया कर! यह प्राइवेट, अकेले में मुझसे कह दें कि देख, सुई मत चुभाना। डोर तू भला पकड़, क्योंकि फायदा हमें भी है, चढ़ोतरी होती है। कोई बेटा नहीं हो रहा, किसी को बेटी नहीं हो रही, किसी की सगाई नहीं हो रही। तो लोग चढ़ोतरी चढ़ाते हैं, रेवड़ियां बंटवाते हैं, मिठाइयां लाते हैं। तेरी वजह से हमको कम से कम चार-पांच गुना ज्यादा मिलता है। मगर तू हमारी जान ले लेता है। हम वैसे ही उचकेंगे। तू सिर्फ हाथ से इशारा कर दिया कर। सुई चुभाने की कोई जरूरत नहीं है। तो मैं उनसे कहता कि आधा मेरा! तो आधा मुझे मिलता। और मैंने करीब-करीब सारे वलियों की रस्सियां पकड़ कर देखीं, वे सब सुई चुभाने से खूब उछलते-कूदते। और बाद में मुझसे हाथ जोड़ कर कहते कि भैया, तू हमारी बदनामी न करवा। क्रोध तो हमें इतना आता है एक झापड़, तेरे को एक चपत मार दें, मगर अगर मारें, तो हमारी भद्द खुल जाए। सो हम कुछ कह भी नहीं सकते, उछलना ही कूदना पड़ता है। मगर लोग चढ़ा रहे हैं...। तब से मैंने देखा कि क्या धोखाधड़ी चल रही है! गणेश जी की मूर्ति के सामने चढ़ा रहे हो, हनुमान जी की मूर्ति के सामने चढ़ा रहे हो! किसी को गौ-भक्ति की पड़ी है, किसी को बंदर-भक्ति की पड़ी है! कोई हाथियों की पूजा कर रहा है! इस देश की बुद्धि तो देखो थोड़ी। अब वे खुशामद के लिए कह रहे हैं। यह स्तुति है झूठी। वे मेरे संन्यासी...। और मेरे संन्यासी तो तर्क करने में कुशल हो जाते हैं। वे तो चोट करने में कुशल हो जाते हैं। उनके पास तो तलवार में धार आ जाती है। तो बीस-पच्चीस संन्यासी गए, उन्होंने उनको ठिकाने लगा दिया होगा। उस भय से कह रहे हैं। नहीं तो यह विरोधाभास कैसा? चौथी बात उन्होंने कही कि अखबारों में मेरा जो निवेदन अन्य चौदह साधु-महंत-मंडलेश्व आदि के साथ आया है, उसमें जो शब्द और भाषा छापी गई है, ऐसा मैंने कभी कहा ही नहीं है। जो भी छपा है वह प्रेस की विकृति मात्र है। अगर ऐसा है शंभू महाराज, तो उसका खंडन करना चाहिए अखबारों में। यह मेरे शिष्यों को कहने से कुछ सार नहीं है। अखबारों में खंडन करो कि तुम्हारे वचन गलत छापे गए हैं। वह तो तुमने खंडन नहीं किया। यह झूठ बात है। सचाई यह है कि शंभू महाराज ने पच्चीस हजार रुपया दे कर अखबारों में वे वक्तव्य छपवाए। अखबारों में कोई वक्तव्य छापने को राजी भी नहीं था। और ये कौन हैं चौदह साधु-महंतमंडलेश्वर? ये वे ही लोग हैं, जिनके निहित स्वार्थों पर मुझसे चोट हो रही है। ये वे ही लोग हैं, जो कह रहे हैं--जगत माया है और ब्रह्म सत्य है। ये वे ही लोग हैं, जो लोगों का शोषण कर रहे हैं और इस देश की प्रज्ञा को आगे नहीं बढ़ने दे रहे। ये वे लोग हैं, जो जंजीरें हैं, जिनको तोड़े बिना हम आगे बढ़ नहीं सकेंगे। ये हमारे फांसी के फंदे हैं। Page 247 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy