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________________ ज्यों था त्यों ठहराया भीतर झांको, वहां प्रभु का राज्य है। अपने पर आओ। प्रेम कहता है--दूसरे को पकड़ो। ध्यान कहता है--अपने को पकड़ो। इसलिए ऊपर से तो प्रेम और ध्यान के रास्ते बिलकुल विपरीत मालूम पड़ते हैं। और हैं भी विपरीत। तुम्हारे प्रेम से तो ध्यान का रास्ता बिलकुल विपरीत है। अब तुम्हारी नजर उस युवती पर अटकी है। दूसरे पर अटकी है। यह भी कोई बात हुई! पहले अपने को तो खोज लो। फिर दूसरे की तलाश में जाना। और मैं तुमसे कहता हूं कि तुम अपने को खोज लो, तो दूसरे तुम्हारी तलाश में आएंगे। तुम्हें कहीं किसी की तलाश में जाना न पड़ेगा। तुम दैदीप्यमान हो उठो, तो तुम्हारी किरणें दूसरों को बुला लाएंगी। दूर-दूर से लोग चले आएंगे--तुम्हारे झरने पर पानी पीने; अपनी प्यास बुझाने। कुछ ऐसा करो कि तुम्हें तो रस मिले ही मिले--औरों को भी रस मिल जाए। कुछ ऐसा करो कि परमात्मा तुमसे बह उठे। और जब आदमी ऐसी जगह आ जाता है, जहां सोचने लगता है कि अब खतम ही कर लूं अपने को...| जरूर तुमने सोचा होगा बहुत बार कि अब अपने को मिटा ही लूं, क्योंकि अब जीवन तो है ही नहीं। रस नहीं है। जीए जा रहा हूं। क्या सार है जीने में! खतम ही क्यों न कर लूं? जब खतम करने तक की तैयारी हो, तो इसके पहले एक काम और कर लो, फिर खतम कर लेना। इसके पहले एक काम यह तो कर लो--जान तो लो कि मैं कौन हूं। फिर आत्महत्या करनी हो, तो आत्महत्या कर लेना। हालांकि जिसने अपने को जाना है, उसने कभी आत्महत्या नहीं की है। क्योंकि वह तो जानता है--आत्महत्या हो ही नहीं सकती। आत्मा अमर है। मिटाओ तो भी मिट नहीं सकती। जलाओ, तो भी जल नहीं सकती। और इस शाश्वत को पहचानते ही अपूर्व घटनाएं घटती है। चमत्कार घटते हैं। जादू जीवन में आ जाता है। तुम मिट्टी छुओ और सोना हो जाएगी। तुम कांटा छुओगे और फूल हो जाएगा। यह सारा अस्तित्व परमात्मा से जगमगा उठता है। तुम जगमगा जाओ भीतर, तो बाहर दीए ही दीए जल जाते हैं। जल ही रहे हैं। सिर्फ तुम अंधे हो, इसलिए दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। और चारों तरफ से रस तुम्हारी तरफ बहने लगता है। तुम बहो--फिर देखो। यह संकट की घड़ी है, इसका उपयोग कर लो। मेरे हिसाब से संकट की घड़ियां बड़े सौभाग्य की घड़ियां होती हैं। समझदार उनको वरदान बना लेते हैं। नासमझ--उनको अभिशाप। सब तुम पर निर्भर है। आज इतना ही। नौवां प्रवचन; दिनांक १९ सितंबर, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना Page 225 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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