SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया दिया कि ये भाग खड़े हुए मुझे जिसको छांटना हो, कुछ करना नहीं पड़ता। एक बात कह दूंगा, और वे अपने आप भाग जाएंगे। मैं तो उनको ही अपने पास चाहता हूं, जो इस अग्निपथ पर चलने को राजी हैं उन थोड़े से लोगों के लिए। हर किसी के लिए कोई उपाय नहीं है मुझसे मिलने का । न कोई जरूरत है। न मुझे कोई आकांक्षा है। मैं कुछ नेता नहीं हूं। मुझे तुम्हारे मत नहीं चाहिए; न वोट चाहिए। मैं क्यों फिक्र करूं भीड़भाड़ की ! इसलिए मुझे जो कहना है, जैसा कहना है, वैसा ही कहूंगा। रत्ती भर समझौता नहीं करूंगा। समझौता करे राजनेता और तुम्हारे जो धर्मगुरु समझौता करते हैं, वे सब राजनेता हैं। समझौते की भाषा ही राजनीति की भाषा है। मैं बिलकुल गैर-समझौतावादी हूं। मुझे जो कहना है, जैसा कहना है, उसको धार दे कर कहूंगा। गर्दन कटती होकटती हो, कट जाए। मेरी कटे मेरी कट जाए तुम्हारी कट जाए! कोई फिक्र नहीं। तुम्हारी कटे -- उनको आत्मा को जानने की कुंजी -- मैं अपने संन्यासियों को कोई अनुशासन नहीं देता हूं। हां, जरूर देता हूं। वही ध्यान है। और जो व्यक्ति अपने को पहचानने लगता है, उसके आचरण मैं अपने आप क्रांति हो जाती है फिर उसे दूध पीना हो दूध पीए फल खाने हो फल खाए । मांसाहार करना हो मांसाहार करे में कुछ नहीं कहता। लेकिन तुम यहां देखो मेरे पास लाखों मांसाहारी आए हैं और चुपचाप शाकाहारी हो गए हैं। और मैंने एक दिन नहीं कहा किसी को कि शाकाहारी हो जाओ। इसको में क्रांति कहता हूँ। मैंने किसी से कहा नहीं कि तुम शाकाहारी हो जाओ। यहां तो मेरे पास मांसाहारियों की सारी दुनिया से... क्योंकि सारी दुनिया मांसाहारी है। जैन अपने बच्चों को पढ़ने पश्चिम भेजते हैं वे सब जा कर मांसाहारी हो जाते हैं। क्या खाक अहिंसा सिखाई थी उनको! मैं उन डाक्टरों को जानता हूं, परिचित हूं, वे मेरे मित्र हैं, जो पश्चिम पढ़ने गए। वहां से मांसाहार करना सीख कर आ गए। अब चोरी-छिपे मांसाहार करते हैं अंडे खाते हैं और जैन मंदिर भी जाते हैं! ऊपर-ऊपर अहिंसा परमोधर्मः भी चलता है। ये न गए होते पश्चिम, तो अभी भी शाकाहारी होते मगर वह शाकाहार होना झूठ होता। पश्चिम ने इनका झूठ उखाड़ दिया। इनकी झीनी-सी पर्त पाखंड की फाड़ दी। पश्चिम में जाकर इनको समझ में आ गया कि मांसाहार करना शरीर के लिए शक्तिशाली है। बस, वहां से मांसाहार करना सीख कर आ गए! गई सब शिक्षा । गया सब अनुशासन। मगर अभी भी बाहर से छिपाना पड़ता है। अभी भी बाहर तो वही मुखौटा लगाए रहते हैं। मैं एक डाक्टर के घर मेहमान था। जब मैंने उनके फ्रिज में अंडे देखे, तो मैंने कहा कि तुम जैन हो और अंडे कैसे! उन्होंने कहा, अब आपसे क्या छिपाना कम से कम आपसे तो मैं सच कह सकता हूं कि मैं अंडे खाता हूं। मगर और किसी को नहीं बता सकता। चोरी-छिपे खाता हूं। लेकिन अंडा बिना मैं नहीं चल सकता। पश्चिम गया। पांच साल पश्चिम में रहा। अंडे खाना सीख गया। और बहुत कुछ भी खाया। और सब तो छोड़ना पड़ा। क्योंकि यहां चोरी से Page 217 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy