SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि एक-एक मन की इतनी क्षमता है कि पृथ्वी पर जितने शास्त्र हैं, जितने ग्रंथ हैं, जितनी किताबें हैं, जितने पुस्तकालय हैं--एक आदमी याद कर सकता है-- इतनी क्षमता है! और थोड़ी-बहुत किताबें नहीं हैं। सिर्फ ब्रिटिश म्यूजियम की लायब्रेरी में इतनी किताबें हैं कि अगर हम एक किताब के बाद एक किताब को रखते चले जाएं, तो जमीन के सात चक्कर पूरे हो जाएंगे। इतनी ही किताबें मास्को की लायब्रेरी में हैं। और दुनिया में बहुत बड़ी-बड़ी लायब्रेरियां हैं। ये सारे पुस्तकालय भी एक आदमी याद कर सकता है, इतनी क्षमता है। इतना तुम्हारे मस्तिष्क का फैलाव हो सकता है। और इस मस्तिष्क और इस देह के भीतर छिपा बैठा है जीवन, चैतन्य। पुरुष यानी इस पुर के भीतर जो बासा है; वह जो इस पुर के भीतर केंद्र पर बैठा हुआ है। और जब तुम इसे जान लेते हो, तो पुरुषोत्तम हो जाते हो। तब तुम साधारण पुरुष नहीं रह जाते। उत्तम हो जाते हो। तुम शिखर छू लेते हो।। मत खोजो कहीं और। जो भीतर है, उसे बाहर खोजोगे--चूकोगे। वहां है ही नहीं, तो पाओगे कैसे! दैरो हरम की गलियां छानते रहो--खाक मिलेगी। भीतर झांको। स्वयं को जान लेना सब कुछ जान लेना है। और जो स्वयं को नहीं जानता, वह कुछ भी जान ले, कुछ भी नहीं जानता। इक साधे सब सधै, सब साधे सब जाए! तुम एक को साध लो, बस। यह जो तुम्हारे भीतर पुरुष है, इसको ही पहचान लो। इतना काफी है। और तुम्हारा जीवन रोशन हो जाएगा। जगमगा उठेगा। दीपावली हो जाएगी। और ऐसे दीए, जो फिर बुझते नहीं। और ऐसी रोशनी जो फिर कभी धीमी नहीं होती। जो प्रगाढ़ से प्रगाढ़तर होती चली जाती है। इसी परम ज्योति का नाम परमात्मा है। आत्मा का ही परम रूप परमात्मा है। तीसरा प्रश्न: भगवान, श्री कम्मू बाबा एक सूफी फकीर थे, जिनका दो साल पहले देहांत हो गया। वे गोरेगांव बंबई में रहते थे, जहां पर अब उनकी मजार है। मेरी अंतरात्मा मानती है कि वे प्रबुद्ध संत थे, जिन्होंने सत्य को समझा था। दया और करुणा के समुद्र थे। सभी धर्म व समाज के व्यक्ति उनके पास जाते और शांति पाते थे। खूब मस्त फकीर थे। उन्होंने मेरे बहुत प्रयास करने पर मुझे एक सूफी कलाम दिया। उसके सवा साल बाद ही उनका देहांत हो गया। उन्हें कुछ पूछ न पाया। क्योंकि मरने के एक साल पहले वे बिलकुल बच्चे की तरह हो गए थे। कलाम किस ढंग से पढ़ना है, इसका उन्होंने कोई सुनिश्चित तौरतरीका व नियम नहीं बताया। जब इच्छा हो, जहां हो, उनका दिया कलाम पढ़ सकते हैं। मैं कुछ समय से आपसे बहुत अधिक प्रभावित हूं, परंतु सोचता हूं कि यदि मैंने आपसे संन्यास लिया, तो कहीं श्री कम्मू बाबा तथा उनके दिए गए सूफी कलाम का तिरस्कार तो न होगा? कभी यह भी सोचता हूं कि शायद इस कलाम की ही अनुकंपा से और सदगुरु Page 189 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy