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________________ ज्यों था त्यों ठहराया क्या करेगा बैठा-बैठा! सिर्फ कल्पना करेगा। और तो कुछ करने को बचा नहीं। और यथार्थ से उसके सारे संबंध छूट जाएंगे। यथार्थ से तो भाग आया वह। अब एकांत में बैठा-बैठा कल्पना करता रहेगा। अपने से ही बातें करने लगेगा धीरे-धीरे। तुमने देखा होगा पागलखानों में जा कर, पागल अपने से ही बातें करते रहते हैं! तुम उनको पागल कहते हो। और उसको तुम धार्मिक कहते हो, जो ईश्वर से बातें कर रहा है! कहां का ईश्वर? कल्पित! लेकिन वह ईश्वर से बातें कर रहा है! खुद ही वह बोलता है, खुद ही जवाब देता है। यह एकांत में संभव है। एकांत हो--और भूखा हो--ये दो चीजें अगर तुम पूरी कर लो, तो तुम्हारी कोई भी कल्पना सच मालूम होने लगेगी। लेकिन यह अपने को धोखा देने का उपाय है। धर्म नहीं है-- आत्मवंचना है। यह सूत्र इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि इस सूत्र में सारे धर्म का धोखा आ गया है। ना यथा यतने नित्यं यदभावयति यन्मयः। मनुष्य नित्य जैसा यत्न करता है, तन्मय हो कर जैसी भावना करता है, वैसा ही हो जाता है। यदृगिच्छेच्च भवितुं तादृग्भवति नान्यथा।। वैसा ही हो जाता है अन्यथा नहीं। और मन की भावना का बड़ा प्रभाव है कुछ चीजों पर। शरीर पर तो बहुत प्रभाव है। तुम एक छोटा-सा प्रयोग कर के देखो। अपने हाथों को बांध कर बैठ जाओ। अंगुलियों को अंगुलियों में फंसा लो। दस आदमी बैठ जाओ। अंगुलियों में अंगुलियां फंसा कर और दसों दोहराओ कि अब हम कितना ही उपाय करें, तो भी हम हाथ को खोल न सकेंगे। यह छोटा-सा प्रयोग है, जो कोई भी कभी भी कर सकता है। हम कितनी भी कोशिश करें, हाथ को हम खोल न सकेंगे। लाख कोशिश करें, हाथ को हम खोल न सकेंगे। दस मिनट तक यह बात दोहराते रहो, दोहराते रहो, दोहराते रहो। और दस मिनट के बाद पूरी ताकत लगा कर हाथ को खोलने की कोशिश करना। और तुम हैरान हो जाओगे। दस में से कम से कम तीन आदमियों के हाथ बंधे रह जाएंगे। वे जितना खींचेंगे, उतनी ही मुश्किल में पड़ जाएंगे। पसीना-पसीना हो जाएंगे, हाथ नहीं खुलेंगे। तीस प्रतिशत, तेतीस प्रतिशत व्यक्ति सम्मोहन के लिए बहुत ही सुविधा पूर्ण होते हैं। तेतीस प्रतिशत व्यक्ति बड़े जल्दी सम्मोहित हो जाते हैं। और यही सम्मोहित व्यक्ति तुम्हारे तथाकथित धार्मिक व्यक्ति बन जाते हैं। ये ही तुम्हारे संत! ये ही तुम्हारे फकीर! इनके लिए कुछ भी करना आसान है। जब अपना ही हाथ बांध लिया खुद ही भावना करके और अब खुद ही खोलना चाहते हैं, नहीं खुलता। और एक मजा है: जितनी वे कोशिश करेंगे और नहीं खुलेगा, उतनी ही यह बात गहरी होती जाएगी कि अब मुश्किल हो गई। हाथ तो बंध गए, अब नहीं खुलने वाले। घबड़ा जाएंगे। हाथ को खोलने के लिए अब इनके पास कोई उपाय नहीं है। अब हाथ को खोलने के लिए इनको पूरी प्रक्रिया को दोहराना पड़ेगा। अब इनको खींचातानी बंद करनी चाहिए। अब इनको फिर दस मिनट तक सोचना चाहिए कि जब मैं हाथ खोलूंगा, तो खुल जाएंगे। खुल जाएंगे--जरूर खुल जाएंगे। दस मिनट तक ये Page 181 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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